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कसे कि सिर्र-ए-निहानस्त दर अ'लन हम: ऊस्त

शाह नियाज़ अहमद बरेलवी

कसे कि सिर्र-ए-निहानस्त दर अ'लन हम: ऊस्त

शाह नियाज़ अहमद बरेलवी

MORE BYशाह नियाज़ अहमद बरेलवी

    कसे कि सिर्र-ए-निहानस्त दर अ'लन हम: ऊस्त

    उ'रूस-ए-ख़ल्वत-ओ-हम-शम-ए'-अंजुमन हम: ऊस्त

    वो जो छिपा भेद है वस्तुतः सब वही है

    एकांत की दुल्हन और महफ़िल की शम्अ’ सब वही है

    हमी सदा-ए-ब-गोशम रसाँद बाद-ए-सबा

    कि लालः-ओ-गुल-ओ-नसरीन-ओ-नस्तरन हम: ऊस्त

    मेरे कानों में सुब्ह की ठंडी हवा ने यही आवाज़ दी

    कि लाला, गुलाब, सेवती और नस्तरन सब वही है

    ज़े-मुस्हफ़-ए-रुख़-ए-ख़ूबाँ हमीं नमूद रक़म

    कि ख़त-ओ-ख़ाल-ओ-रुख़-ओ-ज़ुल्फ़-ए-पुर-शिकन हम: ऊस्त

    हसीनों के चेहरे की किताब में यही लिखा है

    कि ख़त, रुख़्सार और घुंघराली ज़ुल्फ़ें सब वही है

    ज़े-साज़-ए-मुत्रिब-ए-पुर-सोज़ ईं रसीद ब-गोश

    कि चोब-ओ-तार-ओ-सदा-ए-तनन तनन हम: ऊस्त

    उदास गवय्ये की धुन से मैंने ये सुना

    कि तार और तनन तनन की आवाज़ सब वही है

    ज़े-सिर्र-ए-इश्क़ चू वाक़िफ़ शवी यक़ीं दानी

    कि क़ैस-ओ-लैला-ओ-शीरीं-ओ-कोहकन हम: ऊस्त

    जब तुम इ’श्क़ के राज़ को समझ जाओगे तो यक़ीन कर लोगे

    कि क़ैस-ओ-लैला और शीरीं-ओ-फ़र्हाद सब वही है

    शुनीदःअम ब-सनम ख़ान: अज़ ज़बान-ए-सनम

    सनम-परस्त-ओ-सनम हम सनम-शिकन हम: ऊस्त

    मैंने बुत-ख़ाने में बुतों की ज़बान से सुना है

    बुतों को पूजने वाला और ख़ुद बुत और बुत-शिकन सब वही है

    नज़र ब-ऐ'ब म-कुन दर तुयूर-ए-बाग़-ए-वजूद

    कि तूतियान-ए-चमन ज़ाग़-ओ-ज़ग़न हम: ऊस्त

    हस्ती के बाग़ के परिंदों के नुक़्स पर नज़र डालो

    क्यूँ कि चमन के पर्दे चील और कव्वे सब वही है

    शुनीद-ए-मन हम: सिद्क़स्त-ओ-दीदन-ए-मन हम: हक़

    कि गोश-ए-मन हम: हस्त-ओ-चश्म-ए-मन हम: ऊस्त

    मैंने बुत-ख़ाने में बुतों की ज़बान से सुना है

    बुतों को पूजने वाला और ख़ुद बुत और बुत-शिकन सब वही है

    चुनाँ ज़े-ख़्वेश बरूँ रफ़्तम-ओ-दरूँ गश्तम

    कि दीदः-ओ-दीदः-ए-जानम ब-जान-ओ-तन हम: ऊस्त

    मेरा सुना हुआ सब सच्च है और मेरा देखा हुआ सब हक़ीक़त है

    क्यूँ कि मेरा कान सब वही है और मेरी आँख वही है

    अगर तू दफ़्तर-ए-इस्लाम-ओ-कुफ़्र पार: कुनी

    यक़ीं शवद ब-तू कीं शैख़-ओ-बरहमन हम: ऊस्त

    अगर इस्लाम और कुफ़्र के औराक़ चाक कर दो

    तो तुम्हें यक़ीन हो जाएगा कि ये शैख़-ओ-ब्रहमन सब वही है

    अगर ज़े-क़ैद-ए-तअ'य्युन बरूँ शवी चु 'नियाज़'

    नज़र कुनी कि दरीं ज़ेर-ए-पैरहन हम: ऊस्त

    अगर तुम नियाज़ की तरह अपने अस्तित्व की क़ैद से मुक्त

    हो जाओगे तो देखोगे कि उस लिबास के अंदर सब वही है

    'नियाज़' नीस्त कि मी-गोयद ईं कलाम ईं दम

    क़सम ब-हक़ कि दरीं वक़्त दर सुख़न हम: ऊस्त

    इस वक़्त ये ‘नियाज़’ नहीं है जो ये बातें कह रहा है

    ख़ुदा की क़सम इस वक़्त जो बातें कर रहा है सब वही है

    स्रोत :
    • पुस्तक : दीवान-ए-नियाज़-ए-बे-नियाज़ (पृष्ठ 45)
    • संस्करण : First

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