मा'शूक़ ब-सामाँ शुद ता बाद चुनीं बादा
मा'शूक़ ब-सामाँ शुद ता बाद चुनीं बादा
कुफ़्रश हमः ईमाँ शुद ता बाद चुनीं बादा
मा’शूक़ को साज़-ओ-सामान हासिल हुआ जब तक रहे ऐसा ही रहे
उस का कुफ़्र ईमान में तब्दील हो गया जब तक रहे ऐसा ही रहे
या-रब कि दिलम ख़स्ते दर बर रूख़-ए-मन बस्ते
हम ख़ानः-ओ-दरबाँ शुद ता बाद चुनीं बादा
या-रब मेरे ख़स्ता-दिल ने उस रुख से त’अल्लुक़-ए-ख़ातिर पैदा कर लिया
ये घर और उस का दरबान बन गया है जब तक रहे ऐसा ही रहे
क़हरश हमः रहमत शुद ज़हरश हमः शर्बत शुद
अक़रब शकर अफ़्शाँ शुद ता बा'द चुनीं बादा
उस का क़हर रहमत और उस का ज़हर शर्बत बन गया
’अक़्रब ,शकर निसार करने लगा जब तक रहे ऐसा ही रहे
ज़ाँ तलअ'त-ए-शाहानः वाँ मशअ'ला-ए-ख़ानः
हर गोश: चू बुस्ताँ शुद ता बाद चुनीं बादा
उस तल्अ’त शाहाना और मश’अल-ख़ाना से
हर गोशा बोसताँ हो गया, जब तक रहे ऐसा ही रहे
हम बादः जुदा ख़ुर्दी हम ऐ'श जुदा कर्दी
दर महफ़िल-ए-मस्ताँ शुद ता बाद चुनीं बादा
तूने अलग बादा-नोशी की और औक़ात-ए-ऐ’श भी अलग हो कर गुज़ारे
मस्तों की महफ़िल में गए, जब तक रहे ऐसा ही रहे
ग़म रफ़्त-ओ-फ़ुतूह आमद शब रफ़्त-ओ-सुबूह आमद
ख़ुर्शीद दरख़्शाँ शुद ता बाद चुनीं बादा
ग़म का ज़माना गया, फ़ुतूह आई, रात गई, सुब्ह आई
ख़ुरशीद मुनव्वर हुआ, जब तक रहे ऐसा ही रहे
'शम्स-उल-हक़'-ए-तबरेज़ी अज़ बस कि दर आमेज़ी
तबरेज़ ख़ुरासाँ शुद ता बाद चुनीं बादा
शम्सुल-हक़ तबरेज़ी तूने बहुत ख़लत-मलत कर दिया
तबरेज़ खुरासान बन गया, जब तक रहे ऐसा ही रहे
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