मन बदीं ख़ूबी-ओ-ज़ेबाई नदीदम रूए रा
मन बदीं ख़ूबी-ओ-ज़ेबाई नदीदम रूए रा
वीं दिल-आवेज़ी-ओ-दिल-बंदी न-बाशद मूए रा
मैं ने इतना हसीन और ख़ूबसूरत चेहरा नहीं देखा
मैं ने इतने दिल-पसंद और दिलकश किसी के केश नहीं देखे
रूए गर पिन्हाँ कुनद संगीँ-दिल-ए-सीमीँ बदन
मुश्क ग़म्माज़ अस्त न-तवानद न-हुफ़्तन बूए रा
पत्थर-दिल और चाँद जैसे बदन वाला महबूब अगर अपना चेहरा छुपा लेता है
तो हिरन की नाभि उस का पता बता देती है, उस की ख़ुश्बू छुपाई नहीं जा सकती
ऐ मुआफ़िक़ सूरत-ओ-मा'नी कि ता चश्म-ए-मनस्त
अज़ तू ज़ेबा-तर न-दीदम रू-ए-ख़ुश-तर खूए रा
तू बाहर और अंदर एक जैसा है
हमारी आँख़ों ने तुझ जैसा ख़ूबसूरत और नेक नहीं देखा
गर बसर मी-कर्दम अज़ बेचारगी ऐ'बम मकुन
चूँ तू चौगाँ मी-ज़नी जुर्मे न-बाशद गूए रा
अगर मैं ग़रीबी की ज़िन्दगी गुज़ार रहा हूँ तो मेरी बुराइयाँ न निकाल
जब तू ख़ुद चौगान खेल रहा है तो उस में गेंद का क्या क़ुसूर है
मा मलामत रा ब-जाँ जुऐम दर बाज़ार-ए-इ'श्क़
कुंज-ए-ख़ल्वत पारसायान-ए-मलामत जूए रा
हम बाज़ार-ए-इ’श्क़ में निंदा तलाश करते हैं
जबकि मलामत तलाश करने वाले पवित्र लोग एकांत की तलाश करते हैं
हर कि रा वक़्ते दमे बुद:-अस्त व रोज़े मस्तीये
दोस्त दारद नाल:-ए-मस्तान-ओ-हाओ-हुए रा
सब के लिए मस्ती का एक समय होता है
मुझे तो मस्तों की फ़र्याद और उनका रोना-धोना महबूब है
'सा'दिया' गर बोस: बर दस्तश नमी आरी निहाद
चार: आँ दानम कि दर पायश ब-माली रूए रा
ऐ ‘सा’दी’ अगर तुझे उसके हाथ चूमने का सम्मान न मिले
तो अपना सर ही उस के पाँव पर रख दे
- पुस्तक : नग़्मात-ए-सिमा (पृष्ठ 40)
- प्रकाशन : नूरुलहसन मौदूदी साबरी
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