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Sufinama

मन बदीं ख़ूबी-ओ-ज़ेबाई नदीदम रूए रा

सादी शीराज़ी

मन बदीं ख़ूबी-ओ-ज़ेबाई नदीदम रूए रा

सादी शीराज़ी

MORE BYसादी शीराज़ी

    मन बदीं ख़ूबी-ओ-ज़ेबाई नदीदम रूए रा

    वीं दिल-आवेज़ी-ओ-दिल-बंदी न-बाशद मूए रा

    मैं ने इतना हसीन और ख़ूबसूरत चेहरा नहीं देखा

    मैं ने इतने दिल-पसंद और दिलकश किसी के केश नहीं देखे

    रूए गर पिन्हाँ कुनद संगीँ-दिल-ए-सीमीँ बदन

    मुश्क ग़म्माज़ अस्त न-तवानद न-हुफ़्तन बूए रा

    पत्थर-दिल और चाँद जैसे बदन वाला महबूब अगर अपना चेहरा छुपा लेता है

    तो हिरन की नाभि उस का पता बता देती है, उस की ख़ुश्बू छुपाई नहीं जा सकती

    मुआफ़िक़ सूरत-ओ-मा'नी कि ता चश्म-ए-मनस्त

    अज़ तू ज़ेबा-तर न-दीदम रू-ए-ख़ुश-तर खूए रा

    तू बाहर और अंदर एक जैसा है

    हमारी आँख़ों ने तुझ जैसा ख़ूबसूरत और नेक नहीं देखा

    गर बसर मी-कर्दम अज़ बेचारगी ऐ'बम मकुन

    चूँ तू चौगाँ मी-ज़नी जुर्मे न-बाशद गूए रा

    अगर मैं ग़रीबी की ज़िन्दगी गुज़ार रहा हूँ तो मेरी बुराइयाँ निकाल

    जब तू ख़ुद चौगान खेल रहा है तो उस में गेंद का क्या क़ुसूर है

    मा मलामत रा ब-जाँ जुऐम दर बाज़ार-ए-इ'श्क़

    कुंज-ए-ख़ल्वत पारसायान-ए-मलामत जूए रा

    हम बाज़ार-ए-इ’श्क़ में निंदा तलाश करते हैं

    जबकि मलामत तलाश करने वाले पवित्र लोग एकांत की तलाश करते हैं

    हर कि रा वक़्ते दमे बुद:-अस्त रोज़े मस्तीये

    दोस्त दारद नाल:-ए-मस्तान-ओ-हाओ-हुए रा

    सब के लिए मस्ती का एक समय होता है

    मुझे तो मस्तों की फ़र्याद और उनका रोना-धोना महबूब है

    'सा'दिया' गर बोस: बर दस्तश नमी आरी निहाद

    चार: आँ दानम कि दर पायश ब-माली रूए रा

    ‘सा’दी’ अगर तुझे उसके हाथ चूमने का सम्मान मिले

    तो अपना सर ही उस के पाँव पर रख दे

    स्रोत :
    • पुस्तक : नग़्मात-ए-सिमा (पृष्ठ 40)
    • प्रकाशन : नूरुलहसन मौदूदी साबरी

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