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मनम कि गोशः-ए-मय-ख़ानः ख़ानक़ाह-ए-मनस्त

हाफ़िज़

मनम कि गोशः-ए-मय-ख़ानः ख़ानक़ाह-ए-मनस्त

हाफ़िज़

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    मनम कि गोशः-ए-मय-ख़ानः ख़ानक़ाह-ए-मनस्त

    दु’आ-ए-पीर-ए-मुगाँ विर्द-ए-सुब्ह-गाह-ए-मनस्त

    मैं वह हूँ कि मैख़ाने का गोशा ही मेरी ख़ानक़ाह है, पीर-ए-मुग़ां की दुआ ही मेरा सुब्ह का वज़ीफ़ा है।

    ज़ पादशाह-ओ-गदा फ़ारिग़म बे-हमदिल्लाह

    गदा-ए-ख़ाक-ए-दर-ए-दोस्त पादशाह-ए-मनस्त

    ख़ुदा का शुक्र है कि मैं बादशाह और फ़क़ीर से बेनियाज़ हूँ।

    दोस्त के दरवाज़े की ख़ाक का फ़क़ीर मेरा बादशाह है।

    ग़रज़ ज़ मस्जिद-ओ-मय-ख़ानः-अम विसाल-ए-शुमास्त

    जुज़ नाम-ए-ईं ख़याल न-दारम ख़ुदा गवाह-ए-मनस्त

    मस्जिद-ओ-मैख़ाना से मेरी ग़रज़ तुम्हारा वस्ल हासिल करना है,

    ख़ुदा गवाह है कि इसके अलावा मेरे दिल में कोई ख़याल नहीं है।

    मरा गदा-ए-तू बूदन ज़ सल्तनत ख़ुश-तर

    कि ज़ुल्ल-ए-जौर-ओ-जफ़ा-ए-तू ’इज़्ज़-ओ-जाह-ए-मनस्त

    मेरे लिए तुम्हारे दर का गदा बनना सल्तनत मिलने से ज़्यादा अच्छा है,

    क्योंकि तुम्हारे जौर-ओ-जफ़ा की ज़िल्लत मेरे लिए 'इज़्ज़-ओ-जाह के बराबर है।

    गुनह अगरचे न-बुवद इख़्तियार-ए-मा 'हाफ़िज़'

    तु दर तरीक़-ए-अदब बाश गो गुनाह-ए-मनस्त

    अगरचे गुनाह मेरे इख़्तियार में नहीं है हाफ़िज़ लेकिन अदब का तरीक़ा यह है कि कहो कि गुनाह मेरा है।

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    बख़्शी सलामत अली

    बख़्शी सलामत अली

    स्रोत :
    • पुस्तक : नग़मातुल उंस फ़ी मजालिसिल क़ुदस (पृष्ठ 158)
    • रचनाकार :शाह हिलाल अहमद क़ादरी
    • प्रकाशन : दारुल एशा'अत ख़ानक़ाह मुजीबिया (2016)
    • संस्करण : First

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