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रू-ए-हर-दिलबर तजल्ली-गाह-ए-हुस्न-ए-रू-ए-ऊस्त

अहमद शाहजहाँपुरी

रू-ए-हर-दिलबर तजल्ली-गाह-ए-हुस्न-ए-रू-ए-ऊस्त

अहमद शाहजहाँपुरी

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    रू-ए-हर-दिलबर तजल्ली-गाह-ए-हुस्न-ए-रू-ए-ऊ-अस्त

    निकहते काँ आवरद बाद-ए-सबा आँ बू-ए-ऊस्त

    हर आशिक़ का चेहरा उसके हुस्न के नूर का जल्वः दिखाने का स्थान है, बयार जो ख़ुशबू ला रही है वह उसी की महक है।

    क़िबला-ए-दिल का'ब:-ए-जाँ रु-ए-आँ जान-ए-जहान-अस्त

    सज्द:-गाह-ए-आशिक़ाँ ताक़-ए-ख़म-ए-अबरू-ए-ऊस्त

    उसका चेहरा दिल का क़िब्ला (वो लक्ष्य जिसकी ओर चित्त आकर्षित हो) जान का काबा है और आशिक़ों की सज्दा-गाह उसके तिरछी भँवें हैं।

    आँ कि ज़द शो'लः ब-जानम बर्क़-ए-हुस्न-ए-आँ परीस्त

    वाँ कि ब-रबूद: दिल-ए-मन निकहत-ए-गेसू-ए-ऊस्त

    जिसने मेरी रूह में आग सुलगाई वह उसी परियों जैसे सुंदर के हुस्न की बिजली है, और जिसने मेरा दिल चुराया वह उसके बालों की ख़ुशबू है।

    तर्क-ए-चश्म-ए-मस्त-ए-ऊ ग़ारत-गर-ए-जानहा-ए-मा-अस्त

    वाँ कि दुज़्दीद: दिल-ओ-दीं तुर्र:-ए-हिन्दू-ए-ऊस्त

    उस महबूब की मस्त निगाहों ने हमारी जानों को नष्ट कर दिया है, और उसके काले बालों ने हमारे दिल और मज़हब को लूट लिया है।

    'अहमदा' बा कि बगोयम हाल-ए-आँ तन्नाज़-ओ-शोख़

    शेव:-ए-आ'शिक़-कुशी बे-नियाज़ी ख़ू-ए-ऊस्त

    अहमद, मैं इस चंचल और बेबाक माशूक़ का हाल क्या बयान करूं उसकी मोहब्बत का तौर-तरीक़ा आशिक़ों की क़त्ल और तबाही और बेलगाव होना है।

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