साक़ी-ए-फ़र्ख़ुन्द:-रू ख़ेज़- व ब-देह जाम रा
साक़ी-ए-फ़र्ख़ुन्द:-रू ख़ेज़- व ब-देह जाम रा
वज़ मय-ए-ख़ुद मस्त कुन ईं दिल-ए-नाकाम रा
मुबारक साक़ी, उठो और जाम को आगे बढ़ाओ और इस शराब से दिल-ए- नाशाद को मख़मूर और सरशार करो।
दर रह-ए-इश्क़त अगर ख़ल्क़ मलामत कुनंद
लेक चे परवा-ए-नंग चूँ मन-ए-बद-नाम रा
तुम्हारे इश्क़ की राह में अगर दुनिया सर ज़निश करती है तो करती रहे मगर मुझे बदनाम के लिए कैसी शर्म और ज़िल्लत।
क़िबला-ए-मन रु-ए-तू का'ब:-ए-मन कु-ए-तुस्त
बस्त:-अम अज़ मुद्दते बह्र-ए-तू एहराम रा
तुम्हारा चेहरा मेरा क़िबला है और तुम्हारा कूचा मेरा काबा है, कि मैंने अरसे से तुम्हारे लिए इहराम बांध रखा है।
अज़ आतिश-ए-हुस्न-ए-रूख़श सोख़त:-अम ऐ सबा
कुन ख़बर अज़ हाल-ए-मन सर्व-ओ-गुल-अन्दाम रा
ऐ सबा, उसके हसीन चेहरे की तपिश से मैं जल चुका हूँ, इस सर्व क़द महबूब को मेरे हाल से बाख़बर कर दे।
'अहमद' अगर ऐ सनम लाएक़-ए-इनआ'म नीस्त
अज़ करम-ए-आ'म-ए-ख़्वेश ख़ास कुन ईं आम रा
ऐ महबूब, अगर अहमद किसी इनाम के काबिल नहीं तो, तू अपने करम ख़ास से इस आम को ख़ास कर दे।
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