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सुरतम पस्तस्त लेकिन मा'नीए दारम बुलंद

शाह नियाज़ अहमद बरेलवी

सुरतम पस्तस्त लेकिन मा'नीए दारम बुलंद

शाह नियाज़ अहमद बरेलवी

MORE BYशाह नियाज़ अहमद बरेलवी

    सुरतम पस्तस्त लेकिन मा'नीए दारम बुलंद

    बातिनम आज़ाद-ए-मुतलक़ ज़ाहिरम दर क़ैद-ओ-बंद

    मेरी सूरत पस्त है लेकिन बुलंद मा’नी रखता हूँ

    मेरा बातिन आज़ाद और बे-क़ैद है, मेरा ज़ाहिर क़ैद-ओ-बंद में है

    राह-ए-हक़ सर कर्दन आसाँ नीस्त जुज़ रफ़्तन ज़े सर

    अंदरीं रह बायद दिल हिम्मत-ए-मुश्किल-पसंद

    राह-ए-हक़ को तय करना आसान नहीं, सिवाए उस के कि सर से गुज़रा जाए उस रास्ते में दिल मुश्किल-पसंद हिम्मत चाहिए

    नीस्त जुज़ हस्ती-ए-हक़ पैदा-ओ-पिन्हाँ दर वजूद

    चश्म-ओ-दिल ब-कुशा-ओ-ब-निगर बे-हिजाब होश-मंद

    वुजूद के ज़ाहिर-ओ-बातिन में सिवाए ज़ात-ए-हक़ के कुछ ज़ाहिर नहीं है

    दाना! दिल की आँखें खोल और बे-हिजाब मुशाहिदा कर

    बातिन-ओ-ज़ाहिर ख़ुद हस्त अव्वल-ओ-आख़िर ख़ुद ऊस्त

    बरतर अज़ चंदस्त चुँ हम जल्वः-गर दर चुँ-ओ-चंद

    बातिन-ओ-ज़ाहिर ख़ुद वो है अव्वल-ओ-आख़िर ख़ुद वो है

    कैफ़-ओ-कम से बुलंद है और कैफ़-ओ-कम में जल्वा-गर भी

    हम ख़ुद शैख़-ओ-बरहमन हम ख़ुद दैर-ओ-हरम

    हम ख़ुद ख़ुल्दस्त-ओ-रिज़वाँ हम ख़ुद नार-ओ-गज़ंद

    ख़ुद वही शैख़-ओ-ब्रहमन भी है ख़ुद वो मंदिर-ओ-मस्जिद भी

    ख़ुद वही जन्नत और रिज़वान भी है और ख़ुद वही आग और सज़ा भी

    हम ख़ुद मस्त-ओ-मय-ख़ान: हम साक़ी ख़ुद उस्त

    हम ख़ुद मुल्ला-ओ-वाइज़ गर्म जोश-ए-वाज़-ओ-पंद

    ख़ुद वही मस्त भी है और शराब और मय-ख़ाना भी और ख़ुद वही साक़ी है

    ख़ुद वही मुल्ला और वा’इज़ भी है जो वा’इज़-ओ-पंद में मुनहमिक है

    हम ख़ुद मा’शूक़-ओ-आ’शिक़ हम ख़ुद हुस्न अस्त-ओ-इ’श्क़

    हम ख़ुद माअ'बूद-ओ-आ’बिद दर निगाह-ए-होशमन्द

    ख़ुद वही माशूक़ भी है, और आशिक़ भी, ख़ुद वही हुस्न भी है और इ’श्क़ भी और अ’क़्ल वालों की निगाह मैं ख़ुद वही मा’बूद भी है और आ’बिद भी

    हम ख़ुद अंदर तमाशा-ए-जमाल-ए-ख़ुद ब-वज्द

    हम ख़ुद अंदर आतिश-ए-इश्क़स्त सोज़ाँ चूँ सिपंद

    ख़ुद वही अपने जमाल के नज़्ज़ारे में वज्द के साथ मश्ग़ूल है

    ख़ुद वही इ’श्क़ की आग में सिपंद की तरह जल रहा है

    हम ख़ुद मुसतग़रक़-ए-दरिया-ए-नैरंगी-ए-ख़्वेश

    हम ख़ुद आमद अज़ सर-ए-इंकार बर ख़ुद रीशख़ंद

    ख़ुद वही अपने तिलिस्म के दरिया में मुसतग़रक़ है

    (और) ख़ुद अपना इंकार करके ख़ुद पर हँसता भी है

    हम ज़े-ख़ुद महजूब गश्त-ओ-ख़ुद-ज़े-ख़ुद पिन्हाँ शुद:

    ख़ुद नक़ाब-ए-ख़ुद शुद-ओ-बर रू-ए-ख़ुद ख़ुद रा फ़िगन्द

    वो ख़ुद अपने आप से मह्जूब हुआ और ख़ुद अपने आप से पोशीदा

    (और) ख़ुद अपना नक़ाब हुआ और ख़ुद अपने चेहरे पर ख़ुद को डाल लिया

    ख़्वेश रा हक़-दाँ-ओ-हक़-बीं ता शवी हक़ आ’क़िबत

    तालिब-ए-हक़ रा निशाँ दादम ज़े-राह-ए-हक़-पसंद

    अपने आपको हक़ समझ और हक़ देख ताकि अंजाम हक़ हो

    हक़-पसंदी की राह से हक़ के तालिब का पता मैंने बता दिया

    नुक्त:-ए-तहक़ीक़ ब-शिनो अज़ नियाज़-ए-बे-नियाज़

    कीं हम: नक़्श-ए-दो-आ’लम नीस्त इल्ला नक़्श-बंद

    हक़ीक़त का ये नुक़्ता ’नियाज़’ बे-नियाज़ से सुनो

    कि दोनों जहान का ये सारा नक़्श सिवाए नक़्श-बंद के कुछ नहीं है

    स्रोत :
    • पुस्तक : दीवान-ए-नियाज़-ए-बे-नियाज़ (पृष्ठ 59)
    • संस्करण : First

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