ब-दाम-ए-ज़ुल्फ़-ए-ऊ यक-दम अगर ज़ाहिद चु मा उफ़्तद
ब-दाम-ए-ज़ुल्फ़-ए-ऊ यक-दम अगर ज़ाहिद चु मा उफ़्तद
ब-रंग-ए-सुब्हः दर हर कार-ए-ऊ सद ’उक़्दः-हा उफ़्तद
अगर ज़ाहिद उस की ज़ुल्फ़ में हमारी तरह एक लम्हे के लिए गिरफ़्तार हो जाए
तो तस्बीह की तरह उसके हर काम में सैंकड़ों गिरहें पड़ जाएँ
ब-ईं दौलत न-बाशद दस्तरस कोताह दस्ताँ रा
कि दामान-ए-बुलंद-ए-यार दर दस्त-ए-रसा उफ़्तद
कोताह दस्तों को ये दौलत हरगिज़ नहीं हासिल हो सकती
कि यार का बुलंद दामन उस दस्त-ए-रसा के हाथ लग जाए
न-गर्दी गिर्द-ए-बाद-आसा ब-गिर्द-ए-सर-कशी हर्गिज़
दर-ईं-जा अज़ कुदूरत हर कि बर-ख़ेज़द ज़ेया उफ़्तद
तो बगूले की तरह सर-कशी के गिर्द गर्दिश में मत रह
क्यूँ कि जो भी कुदूरत सर उठाता है गिरा दिया जाता है
'अजब तशवीश-ए-दिल रू दादः-अस्त ऐ 'दर्द' ज़ाहिद रा
कि चूँ तस्बीह दर दस्त आयदश अज़ कफ़ अ'सा उफ़्तद
ऐ ‘दर्द’ ज़ाहिद अ’जीब तशवीश में मुब्तला है
जब भी तस्बीह उसके हाथ में आती है हाथ से गिर जाती है
- पुस्तक : दीवान-ए-फ़ारसी हज़रत ख़्वाजा मीर दर्द (पृष्ठ 41 - E42)
- रचनाकार : ख़्वाजा मीर दर्द
- प्रकाशन : मतबा अंसारी दिल्ली (1892)
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