बीनद हम:-जा साहिब-ए-इदराक हुवल्लाह
बीनद हम:-जा साहिब-ए-इदराक हुवल्लाह
दर ख़ाक हुवल्लाह बर अफ़्लाक हुवल्लाह
साहब-ए-इदराक के लिए हर जगह हुवल्लाह है, ज़मीन में भी हुवल्लाह और आसमान में भी हुवल्लाह
आलूदः निगाहाँ ज़े लिक़ायश हमः कोर अन्द
बिल्लाह कि बीनद नज़र-ए-पाक हुवल्लाह
आलूदा निगाहों को उस का लिक़ा मुयस्सर नहीं हो सकता, अल्लाह की क़स्म पाक नज़र वाले ही को हुवल्लाह का मुशाहिदा मुयस्सर होता है
दरिया-ए-जमालश चु दर आयद ब-तमव्वुज
बीनद ब-अ'याँ दीदः-ए-नमनाक हुवल्लाह
जब उस का दरिया-ए-जमाल मोजज़िन होता है तो दीदा-ए-नमनाक हुवल्लाह का मुशाहिदा करता है
अहमद चुँ बरूँ आमदः अज़ पर्दः अहद शुद
फ़र्मूद अज़ीं साहिब-ए-लौलाक हुवल्लाह
अहमद जब पर्दे से बाहर आया अहद हो गया, इसी वजह से अल्लाह ने साहब-ए-लौलाक फ़रमाया
साहब-नज़रे गो कि शवद महव-ए-जमालश
पैदास्त ब-हर ज़र्रः-ए-ईं ख़ाक हुवल्लाह
साहिब-ए-नज़र उसे ही कहो जो उस के जमाल में महव हो, उस ख़ाक के हर ज़र्रे से हुवल्लाह आश्कारा है
'अकबर' रुख़-ए-ऊ-जल्वः नुमूदस्त ब-हर-जा
बाशद ब-दिल-ए-आ'शिक़-ए-बे-बाक हुवल्लाह
अकबर’ उस का रुख़ हर जगह जल्वा-फ़रमा है, बे-ख़ौफ़ हो कर दिल से हुवल्लाह का आ6शिक़ होजाओ
- पुस्तक : जज़्बात-ए-अकबर (पृष्ठ 8)
- रचनाकार :शाह अकबर दानापुरी
- प्रकाशन : आगरा अख़बार प्रेस आगरा (1915)
- संस्करण : First
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