चे पिंदारी कि मन अज़ आशिक़ी बेगान: ख़्वाहम शुद
रोचक तथ्य
अनुवाद: अमारा अली
चे पिंदारी कि मन अज़ आशिक़ी बेगान: ख़्वाहम शुद
ज़े-रुस्वाई अगरचे दर जहाँ अफ़्सानः ख़्वाहम शुद
तुम्हारा क्या ख़्याल है कि मैं आशिक़ी छोड़ दूँगा अगर्चे मेरी रुसवाई का अफ़्साना सारी दुनिया में फ़ैल जाएगा.
ज़े-बस ज़ेबास्त लाफ़-ए-इश्क़बाज़ी ख़ुद-परस्ताँ रा
चू बा इश्क़ आश्ना गश्तम ज़े-ख़ुद बेगान: ख़्वाहम शुद
ख़ुद-परस्तों को इश्क़-बाज़ी की बातें ज़ेब देती हैं. मैं जब इश्क़ से आशना न हुँगा तो ख़ुद से बेगाना हो जाउँगा.
गहे पेश-ए-रक़ीबान-ए-सितमगर गिर्यः ख़्वाहम कर्द
गहे दर राह-ए-मुर्ग़ान-ए-ख़बर पर्वान: ख़्वाहम शुद
कभी ज़ालिम रक़ीबों के सामने रोउँगा और कभी जानने वालों के सामने परवाना बन जाउँगा.
नगारा मस्त ब-गुज़श्ते ब-कू-ए-ज़ाहिदाँ रोज़े
बरूँ शुद सूफ़ी अज़ मस्जिद कि दर मय-ख़ानः ख़्वाहम शुद
ऐ महबूब तुम एक दिन ज़ाहिदों की गली से मस्त हो के गुज़रे सूफ़ी मस्जिद से निकल आया कि तुम मय-ख़ाने में जाओगे.
मगर ला'ल-ए-लबत बोसम चू मय दर शीश: जा आरम
मगर ज'अद-ए-तरत गीरम चू मू दर शान: ख़्वाहम शुद
मैं तुम्हारे होठ चूमूँ तो यूँ जैसे जाम के अंदर शराब, कंघी तुम्हारे घुंघराले बालों में इस तरह पैवस्त हो गई है जैसे बाल शाने में समा जाना चाहते हों.
चू आतिश मी-ज़नी दर मन सिपंद-ए-रु-ए-तू गर्दम
चू शम-ए-जाँ शुदी गिर्द-ए-सरत पर्वान: ख़्वाहम शुद
जब तुम मुझ में आग लगाओ तो मैं तुम्हारे चेहरे का सप्ना बन जाऊँ जब तुम शमा’-ए-जान बन जाओ तो मैं तुम्हारे गिर्द परवाने की तरह पकड़ लगाऊँ
अला ऐ याद-ए-शबगीरी ब-गुल-बर्ग-ए-बनागोशश
म-जुम्बाँ ज़ुल्फ़-ए-ज़ंजीरश कि मन दीवानः ख़्वाहम शुद
ऐ रात को चलने वाली हवा उसके कानों के क़रीब ज़ुल्फ़ की ज़ंजीर न हिलाओ कि मैं दीवाना हो जाउँगा.
सर अंदर आस्तीं व तेग़ दर दस्त अस्त 'ख़ुसरव' रा
गर अकनूँ बर सर-ए-कूयत रवम दीवान: ख़्वाहम शुद
वो ‘ख़ुसरौ’ के लिए हाथ में तलवार लिए और सर आस्तीनों में छुपाए हुए हैं, अब अगर मैं तुम्हारी गली में जाऊँ पागल हो जाऊँगा.
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