दमे बा-ग़म ब-सर बुर्दन जहाँ यकसर नमी-अर्ज़द
रोचक तथ्य
अनुवाद: शंकर महेशवरी
दमे बा-ग़म ब-सर बुर्दन जहाँ यकसर नमी-अर्ज़द
बा-मय ब-फ़रोश दल्क़-ए-मा कजीं बेहतर नमी-अर्ज़द
सारी दुनिया की कीमत भी कर न सकेगी समता क्षण भर के दुख की
मेरी कंथा बेच ख़रीदो मदिरा इससे बढ़ कर मुल्य नहीं इसका
ब-कू-ए-मय-फ़रोशानश ब-जामे बर नमी गीरंद
ज़हे सज्जाद:-ए-तक़वा कि यक साग़र नमी-अर्ज़द
लेता कोई नहीं एक प्याला भी देकर इसे हाट में मदिरा के
वाह! धन्य! संयम का चोला जिसकी क़ीमत नहीं एक प्याले की भी
रक़ीबम सरज़निश-हा कर्द कजीं बाब-ए-रूख़-ए-बर-ताब
चे उफ़्ताद ईं सर-ए-मा-रा कि ख़ाक-ए-दर नमी-अर्ज़द
प्रतिद्वंद्वी ने मुझको यूँ धिक्कारा चल तू हटा द्वार से सिर अपना
मेरे सिर को हुआ भला क्या जो कि द्वार की धूलि तलक के योग्य नहीं
तू रा आँ ब कि रू-ए-ख़ुद ज़े-मुश्ताकाँ ब-पोशानी
कि शादी-ए-जहाँगीरी ग़म-ए-लश्कर नमी-अर्ज़द
तेरे लिए यही अच्छा है असक्तों से अपना बदन छिपा लेना
नृप होने का नशा भला पर आसक्तों की सेना तो दुखदाई है
दयार-ओ-यार मर्दुम रा मुक़य्यद मी-कुनद वर्नः
चे-जाए फ़ारस कीं मेहनत जहाँ यकसर नमी-अर्ज़द
मुझको तो बस मतृभूमी के और मित्रजन के बंधन ने बाँधा है
और नहीं तो पारस की धरती तो क्या जग का प्रपंच बेकार मुझे
बशो ईं नक़्श-ए-दिल-तंगी कि दर बाज़ार-ए-यक-रंगी
मुरक़्क़हा-ए-गूनागूँ मय-ए-अहमर नमी-अर्ज़द
अपने मन से हीन भाव के दाग़ मिटा तू यह है एक रंग की हाट
रंग-बिरंगी चीज़ों का तो यहाँ एक मधु का प्याला भी मुल्य नहीं
शिकोह-ए-ताज-ए-सुल्तानी कि बीम-ए-जाँ दराँ दर्ज अस्त
कुलाहे दिल-कश अस्त अम्मा ब-दर्द-ए-सर नमी-अर्ज़द
सम्राटों के मुकुट रोब वाले हैं लेकिन उनमें प्राणों का भय है
मन लुभावने हों किरीट लेकिन माथे की पीड़ा के वे कारण हैंं
बस आसाँ मी-नमूद अव्वल ग़म-ए-दरिया ब-बु-ए-सूद
ग़लत कर्दम कि एक मौजश ब-सद गौहर नमी-अर्ज़द
लाभ-गंध के करण मुझको पहले तो आसान लगे सागर के कष्ट
भूल हुई थी, एक लहर भी नहीं काम की सौ मोती के विनिमय में
ब-रौ गंज-ए-क़नाअत ज़ू ब-कुंज-ए-आ'फ़ियत ब-नशीं
कि यक-दम तंग-दिल बूदन ब-बहर-ओ-बर नमी-अर्ज़द
जा तू खोज तोष की निधि को और शांति-सुख के कोने में रह निश्चिंत
क्षण भर भी लघुता में जीना उचित नहीं है पूरे जल-थल के बदले
चू 'हाफ़िज़' दर क़नाअत-कोश व अज़ दुनिया-ए-दूँ ब-गुज़र
कि यक जौ मिन्नत-ए-दो-नान दो-सद मन ज़र नमी-अर्ज़द
छोड़ो तुच्छ जगत की माया ‘हाफ़िज़’की ही तरह करो संंतोष सदा
सौ मन सोना भी मिल जाए, थोड़ा भी अहसान दुष्ट का उचित नहीं
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