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क़ाएदः - ज़े-तू हर फ़े'ल कि अव्वल गश्त ज़ाहिर

महमूद शबिस्तरी

क़ाएदः - ज़े-तू हर फ़े'ल कि अव्वल गश्त ज़ाहिर

महमूद शबिस्तरी

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    ज़े-तू हर फ़े'ल कि अव्वल गश्त ज़ाहिर

    बराँ गर्दी ब-बारे चंद क़ादिर

    जिस कार्य को तू पहले करता है वह कुछ कठिन-सा ज्ञात होता है। परन्तु बार बार करने से वही कार्य सरल हो जाता है।

    ब-हर बारे अगर नफ़अ'-अस्त गर ज़र

    शवद दर नफ़स तू चीज़े मुदख़्ख़र

    उस कार्य के बार बार करने में लाभ हो अथवा हानि परन्तु तेरे मस्तिष्क में एक वस्तु पर्याप्त मात्रा में इकट्ठी हो जाती है। अर्थात् उस कार्य के करने में जितनी भी वस्तुओं को तुझे आवश्यकता पड़ती है वे सब ज्ञान में जाती हैं

    ब-आ'दत हालहा बा खूए गर्दद

    ब-मुद्दत मेव:हा ख़ुशबु-ए-गर्दद

    यहाँ तक कि जिस प्रकार समय व्यतीत होने पर फलों में सुगन्ध आने लगती है उसी प्रकार उस कार्य के करने का स्वभाव पड़ जाता है।

    अज़ाँ आमोख़्त इंसाँ पेश:हा रा

    वज़ाँ तरकीब कर्द अन्देश:हा रा

    तेरा शरीर तो रहेगा परन्तु उसमें मलीनता होगी। उससे जल के समान सूरत दिखलाई देगी।

    हम: अफ़आ'ल-ओ-अहवाल-ए-मुदख़्ख़र

    हुवैदा गर्दद अंदर रोज़-ए-महशर

    वहाँ दृश्य के भीतर छिपी हुई सभी बातें प्रकट हो जाएंगी। पर्दा दूर कर दिया जाएगा। इस परम मंत्र को पढ़ ले।

    चू उर्यां गर्दी अज़ पैराहन-ए-तन

    शवद ऐब-ओ-हुनर यकबार: रौशन

    दूसरी बार तेरी अच्छाइयाँ तेरे शरीर और मनुष्यत्व के रूप में प्रकट होंगी।

    तंत बाशद लेकिन बे-कुदूरत

    कि ब-नुमायद अज़ चूँ आब सूरत

    ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार प्रकृति के अनुसार संसार में वनस्पतियाँ, जानवर और मनुष्य उत्पन्न होते हैं।

    हम: पैदा शवद आँ जा ज़मायर

    फ़रव ख़्वाँ आयत-ए-तुबलस-सरायर

    तेरे स्वभाव में जितनी भी बातें हैं वे उस अध्यात्मिक जगत में कभी तो उज्ज्वल होकर दिखलाई देंगी और कभी अग्नि (नर्क) के रूप में प्रकट होंगी।

    दिगर बारः ब-वफ़्क़-ए-आ'लम-ए-ख़ास

    शवद अख़्लाक़-ए-तू अज्साम-ओ-अश्ख़ास

    उस समय वर्तमान संसार से तेरा विश्वास उठ जाएगा। बड़ाई और छोटाई का विचार जाता रहेगा।

    चुनाँ कज़ क़ुव्वत-ए-उन्सुर दरीं ज़ा

    मवालीद-ए-सेह-गान: गश्त पैदा

    उस लोक में शरीर की मृत्यु होगी और शरीर तथा आत्मा दोनों का एक ही रंग हो जाएगा।

    हम: अख़्लाक़-ए-तू दर आलम-ए-जाँ

    गहे अनवार गर्दद गाहे तीराँ

    तू सिर से लेकर पैर तक दिल के ही समान हो जाएगा और इस मिट्टी की मूर्ति के सामने का अन्धकार मिट जाएगा।

    तअ'य्युन मुरतफ़ा'अ गर्दद ज़े-हस्ती

    न-मांद दर नज़र बाला-ओ-पस्ती

    उस समय तुझे बड़ी सरलता के साथ उस महान् परमेश्वर के दर्शन होंगे। वह अपने प्रकाश से तुझे प्रकाशित कर देगा।

    न-मानद मर्ग-ए-तन दर दार-ए-हैवाँ

    ब-यक रंगें बर-आयद क़ालिब-ओ-जाँ

    मैं नहीं कह सकता उस समय तुझे कैसी प्रसन्नता होगी और कैसे कैसे विचार तेरे हृदय में उठेंगे। उस समय तुझमें दोनों जहानों को उलट डालने की शक्ति विद्यमान होगी।

    बुवद पा-ओ-सर-ए-तू जुमल: चूँ दिल

    शवद साफ़ी ज़े-ज़ुल्मत सूरत-ए-गिल

    उस समय तू यही सोचेगा आह! ईश्वर ने कैसा अमृत पिला दिया। इस प्रकार पवित्रता प्रदान करने वाली क्या वस्तु है? इस अहंकार को छोड़ देने के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है।

    ब-बीनी बे-जहत हक़ रा तआ'ला

    कुनद अज़ नूर-ए-हक़ बर तू तजल्ला

    अहा! किस मुख से उस आनन्द का और उ’म्र वैभव का वर्णन करूँ?

    न-दानम ता चे मस्तीहा कुनी तू

    दो-आलम रा हम: बरहम ज़नी तू

    जब मैंने तेरा मुखड़ा देख लिया और उस मदिरा का घूँट ले लिया तब मैं नहीं कह सकता कि आगे क्या होगा।

    सक़ाहुम रब्बहुम चे बूद ब-यन्देश

    तहूरन चीस्त साफ़ी गश्तन अज़ ख़्वेश

    मदिरा में मस्ती होती है, वह मतवाला बना देती है, परन्तु उसके उपरान्त नशा उतरता भी है और ख़ुमार आता है। मेरे हृदय में सदैव यही चिन्ता व्याप्त है कि कहीं इस मस्ती के उपरान्त भी ख़ुमार जावे।

    ज़हे लज़्ज़त ज़हे दौलत ज़हे ज़ौक़

    ज़हे हैरत ज़हे हालत ज़हे शौक़

    ख़ुशा आँ दम कि मा बे-ख़्वेश बाशेम

    ग़नी-ए-मुतलक़-ओ-दर्वेश बाशेम

    दीं अक़्ल तक़्वा इदराक

    फ़तादः मस्त-ओ-हैराँ बर सर-ए-ख़ाक

    बहिश्त-ओ-ख़ुल्द-ओ-हूर आँ-जा चे संजद

    कि बे-गान: दराँ ख़ल्वत न-गुंजद

    चु रूयत दीदम-ओ-ख़ूर्दम अज़-आँ मय

    न-दानम ता चे ख़्वाहद शुद पस अज़ वै

    पय-ए-हर-मस्ती-ए-बाशद ख़ुमारे

    दरीं अंदेशः दिल ख़ूँ-गश्त बारे

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