दर जहाँ गर 'आशिक़ी हस्त ऐ मुसलमानाँ मनम
दर जहाँ गर 'आशिक़ी हस्त ऐ मुसलमानाँ मनम
काफ़िरी या मोमिनी या राहेबी हस्त आँ मनम
मुसलमानो! दुनिया में अगर कोई ’आशिक़ है तो वो मैं हूँ
कोई काफ़िर या कोई मोमिन या कोई राहिब है तो वो मैं हूँ
'अर्श-ओ-फ़र्श-ओ-लौह-ओ-कुर्सी अज़ सुरय्या ता-सरा
हर चे बीनी अंदर-आँ बा-वस्ल-ओ-बा-हिज्राँ मनम
’अर्श, फ़र्श, लौह और कुर्सी ग़रज़ कि ’अर्श से फ़र्श तक
वस्ल और हिज्र की शक्ल में तुम जो कुछ देख रहे हो, वो मैं हूँ
दुर्दी-ओ-साक़ी-ओ-मुत्रिब बादः-ओ-रूद-ओ-सुरूद
शाहिद-ओ-शम'-ओ-शराब-ओ-सरवर-ए-मस्ताँ मनम
तलछट, साक़ी, शराब, मूसीक़ार, साज़ और आवाज़
मा’शूक़, शम’, मय और मस्तों का सुरूर मैं ही हूँ
ख़ाक-ओ-बाद-ओ-आब-ओ-आतिश दर जहाँ दानी कि चीस्त
ख़ाक-ओ-बाद-ओ-आब-ओ-आतिश बल्कि जिस्म-ओ-जाँ मनम
तुम्हें क्या मा’लूम कि दुनिया की मिट्टी, हवा, पानी और आग क्या है
मिट्टी, हवा, पानी और आग बल्कि जिस्म और जान मैं ही हूँ
सिद्क़-ओ-किज़्ब-ओ-नेक-ओ-बद दुश्वार-ओ-आसाँ सर-बसर
बल्कि 'इल्म-ओ-फ़ज़्ल-ओ-ज़ुहद-ओ-तक़्वा-ओ-ईमाँ मनम
सच्च, झूट, नेक, अच्छा, दुशवार और आसान
बल्कि ’इल्म ,फ़ज़्ल, ज़ोहद, तक़्वे और ईमान मैं ही हूँ
आतिश-ओ-दोज़ख़ यकीं-दाँ बा-जहीम-ओ-बा-स'ईर
बल्कि फ़िर्दौस-ओ-जिनाँ-ओ-हूरी-ओ-रिज़्वाँ मनम
ये समझ लो कि दोज़ख़ की भड़कती और दहकती आग
बल्कि फ़िरदौस, जन्नत, हूर और रिज़वान मैं ही हूँ
ईं ज़मीं-ओ-आसमाँ बा-हर चे दाख़िल अंदर-आँ
बा-मलाएक बा-परी बा-जिन्न-ओ-बा-इनसाँ मनम
इस ज़मीन और आसमान के अंदर और बाहर जो कुछ है
ख़्वाह वो फ़रिश्ते हों या परी, जिन्न हों या इंसान, वो मैं ही हूँ
'शम्स' तबरेज़ी चे मक़्सदस्त ज़ीं दा'वा कि कर्द
हस्त मक़्सूदम अज़ीं मा'नी कि जान-ए-जाँ मनम
‘शम्स’ तबरेज़ी ने जो कुछ भी दा’वा किया है
उस का मक़्सद सिर्फ़ ये है कि जान-ए-जानाँ मैं ही हूँ
- पुस्तक : कुल्लियात-ए-शम्स तबरेज़ी (पृष्ठ 532)
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