ऐ बाग़बाँ ऐ बाग़बाँ आमद ख़िज़ाँ आमद ख़िज़ाँ
ऐ बाग़बाँ ऐ बाग़बाँ आमद ख़िज़ाँ आमद ख़िज़ाँ
बर शाख़-ओ-बर्ग अज़ दर्द-ए-दिल ब-निगर निशाँ ब-निगर निशाँ
ऐ बाग़बाँ, ऐ बाग़बाँ, ख़िज़ाँ आई ख़िज़ाँ आई
दिल के दर्द का निशाँ शाख़ और पत्तों पर देखो, शाख़ और पत्तों पर देखो
हरगिज़ न-बाशद बे-सबब गिर्यां दो चश्म-ओ-ख़ुशक लब
न-बुवद कसे बे-दर्द-ए-दिल रुख़-ए-ज़ा'फ़राँ रुख़-ए-ज़ा'फ़राँ
बग़ैर सबब के दोनों आँखें अश्क-बार नहीं हो सकतीं और होँट ख़ुश्क नहीं हो सकते
दिल के दर्द के बग़ैर किसी का चेहरा ज़ाफ़रान जैसा नहीं हो सकता, ज़ाफ़रान जैसा नहीं हो सकता
ता के अज़ीं इंकार-ओ-शक म-गुज़ार तू हक़्क़-ए-नमक
बर चर्ख़ पुर चूँ मर्दुमक बे-नर्दबाँ बे-नर्दबाँ
कब तक इंकार-ओ-शक में रहोगे, नमक का हक़ अदा तो करो
छोटे इंसान की तरह आसमान में बग़ैर सीढ़ी के उड़ो, बग़ैर सीढ़ी के उड़ो
ऐ गुल कुजा रफ़्ती ब-गो आख़िर जवाबे बाज़ देह
दर का'र रफ़्ती या शुदी बर आसमाँ बर आसमाँ
ऐ फूल तू कहाँ गया, कोई जवाब तो दो
तू अथाह गहराई में चला गयाया फिर आसमान पर गया ,क्या आसमान पर गया
बुलबुल रसद बरबत ज़नाँ आँ फ़ाख़्तः कूकू कुनाँ
मुर्ग़ां दिगर चूँ मुतरिबाँ बख़्त-ए-जवाँ बख़्त-ए-जवाँ
बुलबुल गाती हुई और फ़ाख़ता कूकू करती हुई आई
दूसरे परिंदे भी मुत्रिब की तरह इक़बाल-मंद इक़बाल-मंद हो कर आए
ख़ामोश-ओ-बिशनो ऐ पिसर अज़ बाग़-ओ-मुर्ग़ां नौह-ई
पैकान-ए-बुर्राँ आमदंद अज़ ला-मकाँ अज़ ला-मकाँ
ख़ामोश हो और ऐ लड़के बाग़ के परिंदों का नोहा सुनो कि
तेज़ तीर ला-मकाँ से आए ला-मकाँ से आए
- पुस्तक : कुल्लियात-ए-शम्स तबरेज़ी, भाग 2 (पृष्ठ 610)
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