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'आशिक़ी चीस्त ब-गो बे-दिल-ओ-बे-जाँ बूदन

रूमी

'आशिक़ी चीस्त ब-गो बे-दिल-ओ-बे-जाँ बूदन

रूमी

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    'आशिक़ी चीस्त ब-गो बे-दिल-ओ-बे-जाँ बूदन

    गिर्द-ए-आँ मह चु फ़लक दाइम-ए-गर्दां बूदन

    ’आशिक़ी क्या है, बे-दिल और बे-जान होना

    उस चाँद के चारों तरफ़ आसमान की तरफ़ हमेशा गर्दिश करना

    दुर्दी-ए-दर्द कशीदन ज़ कफ़-ए-साक़ी-ए-'इश्क़

    रोज़-ओ-शब बे-ख़ुर-ओ-ख़्वाब दर अफ़्ग़ाँ बूदन

    ’इश्क़ के साक़ी के हाथों से दर्द का तलछट पीना

    रात-दिन बग़ैर खाए और सोए आह-ओ-ज़ारी करना

    'आशिक़ी बंद गुस्सतन बुवद-ओ-वारस्तन

    ज़ीं ज़मीं दिझ़म-ओ-बरसर-ए-कैवाँ बूदन

    सारे बंधनों को तोड़ने और इस दुनिया से

    रिश्ता तोड़ कर आसमान पर रहने का नाम ’आशिक़ी है

    ब-जुज़ 'इश्क़ हम: चीज़ फ़ना दानिस्तन

    बा-ग़म-ए-'इश्क़ हमेशः ख़ुश-ओ-शादाँ बूदन

    ’इश्क़ को छोड़ कर दुनिया की तमाम चीज़ों को फ़ानी समझना

    और ’इश्क़ के ग़म में हमेशा ख़ुश-ओ-ख़ुर्रम रहना ही ’आशिक़ी है

    'इश्क़ दर्दे-अस्त कि हम दर्द बुवद दारू-ए-ऊ

    बा-चुनीं दर्द न-शायद पय-ए-दरमाँ बूदन

    ’इश्क़ ऐसा दर्द है कि दर्द ही उस का ’इलाज है

    उस दर्द का ’इलाज तलाश करना दुरुस्त नहीं है

    सिफ़त-ए-'इश्क़ हमः शोरिशी-ओ-ख़ूँ-रेज़ीस्त

    फ़ित्नः-अंगेज़ी-ओ-वीरानी-ए-दुक्काँ बूदन

    ’इश्क़ की ख़ुसूसियत बग़ावत, ख़ूँ-रेज़ी

    फ़ित्ना-अंगेज़ी और अपनी दुनिया को वीरान करना है

    हैफ़ आँ बाशद कि शवद क़ानि'-ए-दरबान-ए-कसे

    आँ कसे रा कि बुवद क़ुदरत-ए-सुल्ताँ बूदन

    उस आदमी पर अफ़सोस कि जिस को बादशाह होना था

    वो किसी का दरबान हो गया और ये उसे अच्छा लग रहा है

    स्रोत :
    • पुस्तक : कुल्लियात-ए-शम्स तबरेज़ी, भाग 2 (पृष्ठ 632)

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