सवाल - चरा मख़्लूक़ रा गोयन्द वासिल
सवाल
प्रश्न
चरा मख़्लूक़ रा गोयन्द वासिल
सुलूक-ओ-सैर-ए-ऊ चूँ गश्त हासिल
मनुष्यों के लिये यह क्यों कहा जाता है कि वे लवलीन हो गये? और फिर उन्हें मार्ग और संतोष, दोनों क्यों कर प्राप्त हुए?
जवाब
उत्तर
विसाल-ए-हक़ ज़े-ख़ल्क़ीयत जुदाई-अस्त
ज़े-ख़ुद बेगान: गश्तन आश्नाई-अस्त
ईश्वर से मिलना संसार से पृथक हो जाना है और अपने आप से कोई दूसरा ही हो जाना, यह उसकी पहचान है।
चू मुमकिन गर्द-ए-इमकाँ बर फ़िशानद
ब-जुज़ वाजिब दिगर चीज़े नमानद
जब सम्भव इस संसार की गर्द को झाड़ देता है तो सत् के अतिरिक्त और कुछ नहीं रह जाता है।
वजूद-ए-हर-दो-आ'लम चूँ ख़याल-अस्त
कि दर वक्त-ए-बक़ा ऐन-ए-ज़वाल-अस्त
मनुष्य को इस दरवाज़े से उस पार निकल जाने का मार्ग कब मिलेगा? उस महान् परमेश्वर के साथ मिट्टी का क्या सम्बन्ध है?
न मख़्लूक़-अस्त आँ कू गश्त वासिल
न गोयद ईं सुख़न जुज़ मर्द-ए-कामिल
मनुष्य क्या वस्तु है जो वह ब्रह्म के साथ जा मिले और उससे किसी प्रकार का सम्बन्ध प्रकट करे।
अदम के राह याबद अंदरीं बाब
चे निस्बत ख़ाक रा बा रब्ब-ए-अरबाब
तू नाशवान है और तू इसी रूप में सदैव एक स्थान पर ठहरा हुआ है। यह नाशवान कब सत् तक पहुँच सकेगा।
अदम चे बूद कि हक़ वासिल आयद
व-अज़-ऊ सैर-ओ-सुलूक-ए-हासिल आयद
कोई जवाहर बिना परीक्षा के सच्चा (पूर्ण) नहीं कहा जा सकता है। और सत् है क्या वस्तु? वह, जो दो ज़मानों तक शेष न रहे।
अगर जानत शवद ज़ीं मआ'नी आगाह
ब-गोई दर ज़माँ असतग़्फ़िरुल्लाह
जिस विद्वान ने इस विषय में कोई पुस्तक लिखी है उसने क्षणिक की परिभाषा लम्बाई, चौड़ाई और मोटाई से की है।
तू मा'दूम-ए-अ'दम पैवस्त: साकिन
ब-वाजिब के रसद मादूम-ए-मुमकिन
जिस अस्तित्व के द्वारा आकार सूरत उत्पन्न होती है वह क्षणभंगुरता के अतिरिक्त और क्या वस्तु है? जब आकार विना पंचभूतों के कुछ भी नहीं है तो वह भी आकार विहीन कुछ भी नहीं है।
नदारद हेच जौहर बे-अ'रज़ ऐन
अरज़ चे बूद वला-यबक़ा-ज़मानैन
इस संसार के जितने भी मांस पिण्ड हैं वे इन्हीं दो वस्तुओं से बने हैं। उनके विषय में नाश के अतिरिक्त और कोई बात ज्ञात नहीं है।
हकीमे कि-अन्दर न रह कर्द तसनीफ़
ब-तूल-ओ-अर्ज़-ओ-उमक़श कर्द तारीफ़
विश्वासी बातें यहाँ पर नहीं हैं। गिनतियाँ बहुत सी हैं परन्तु गिननेवाला एक ही है।
हयूला चीस्त जुज़ मा'दूम-ए-मुतलक़
कि मी-गर्दद ब दो सूरत मुहक़क़िक़
जीवन में उलटफेर
चे सूरत बे-हयूला जुज़ अदम नीस्त
हयूला नीज़ बे-ऊ जुज़ अदम नीस्त
ईश्वर की यात्रा से एक वाष्प नदी में उठती है और समतल भूमि में आकर नीचे गिर पड़ती है।
शुदः अज्साम-ए-आ'लम ज़ीं दो मा'दूम
कि जुज़ मा'दूम अज़ींं शाँ नीस्त मा'लूम
धूप पड़ने पर ताप उत्पन्न होता है और फिर वह गर्मी ऊपर को जाना चाहती है। उस समय नदी का जल उसमें सम्मिलित हो जाता है और उससे लिपट जाता है।
ब-बीं माहियत रा बे-कम-ओ-बेश
न मा'दूम-ओ-न-मौजूदस्त दर ख़्वेश
वही पशुओं की आशा हो जाती है। मनुष्य खाता है और फिर वह पच जाता है।
नज़र कुन दर-हक़ीक़त सू-ए-इम्काँ
कि बे-ऊ हस्ती आमद ऐन-ए-नुक़साँ
वहीं एक बिन्दु के रूप में परिणत हो जाता है और जन्म मरण के चक्कर में पड़कर पुन: मनुष्य के रूप में उत्पन्न होता है।
वजूद अंदर कमाल-ए-ख़्वेश सारीस्त
तअ'य्युनहा उमूर-ए-एतिबारी-अस्त
जब बोलने वाला मनुष्य के अन्दर एक चिंगारी के समान प्रवेश करता है तब शरीर के अन्दर से एक सुन्दर प्रभा प्रस्फुटित होती है।
उमूर-ए-ए'तबारी नीस्त मौजूद
अदद बिस्यार-ओ-यक-चीज़-अस्त मादूद
वह बालक, युवा और वृद्ध होता है और विद्या, ज्ञान और प्रयत्न के मूल्य को समझने लगता है।
जहाँ रा नीस्त हस्ती जुज़ मजाज़ी
सरासर हाल-ए-ऊ लह्हू अस्त व बाज़ी
उस समय ईश्वर के दरबार से मृत्यु का आगमन होता है। पवित्रता, पवित्रात्मा के पास चली जाती है और मिट्टी, मिट्टी में मिल जाती है।
तमसील दर अतवार-ए-वजूद
संसार के जितने भी परमाणु हैं वह सब इसी जीवन रूपी सरिता की बूँदों के समान हैं।
बुख़ारे मुरतफ़ा'अ गर्दद ज़े-दरिया
ब अम्र-ए-हक़ फ़रव आयद ब-सहरा
जब उसपर संसार का भार आ पड़ता है तब उसका समस्त फल, उसका अन्त आदि के समान खुल जाता है।
शुआ'-ए-आफ़ताब अज़ चर्ख़-ए-चारुम
फ़रव बारद शवद तरकीब-ए-बाहम
उन बिन्दुओं में से प्रत्येक अपने केन्द्र की तरफ़ आकर्षित होने लगता है। कारण कि मानवी इच्छा उसकी तरफ़ सदैव लगी रहती है।
कुनद गर्मी दिगर रह अज़्म-ए-बाला
दर आवेज़द बदो आँ आब-ए-दरिया
वाष्प, जल, वर्षा, नमी और गीली मिट्टी और इसके उपरान्त वृक्ष, जानवर और पूर्ण मनुष्य।
चु बा ईशाँ शवद ख़ाक-ओ-हवा ज़म
बरूँ आयद नबात-ए-सब्ज़-ओ-ख़ुर्रम
यह सब प्रारम्भ में एक ही बिन्दु थे, परन्तु फिर उसी बिन्दु ने इतने रूप धारण कर लिये।
ग़िज़ा-ए-जानवर गर्दद ब-तब्दील
ख़ुर्द इंसाँ व याबद बाज़ तहलील
तुझको उस समय ऐसा सुयोग प्राप्त होगा कि तू बिना ही किसी साधना के अपने मित्र से जा मिलेगा।
शवद यक नुक्तः व गर्दद दर अतवार
वज़ाँ इंसाँ शवद पैदा दिगर बार
मित्र! तुम्हारे ही सम्मुख सहस्रों जीवधारी उत्पन्न हुए हैं और मृत्यु के आस बने हैं। इस बात को छोड़ कर तनिक अपने ही आवागमन पर विचार करो।
चु नूर-ए-नफ़्स गोया बर तन आयद
यके जिस्म-ए-लतीफ़-ओ-रौशन आयद
मनुष्य के जीवन-मरण के इन रहस्यों को एक एक करके खोलकर तथा छिपा कर देखो। उसका वर्णन करूँगा।
शवद तिफ़्ल-ओ-जवान-ओ-कोह्ल-ओ-कमपीर
ब-दानद इल्म-ओ-राय फ़हम-ओ-तदबीर
रसद अंगह अज़ल अज़ हज़रत-ए-पाक
रवद पाकी-ब-पाकी ख़ाक-बा-ख़ाक
हम: अज्ज़ा-ए-आ'लम चू नबात-अंद
कि यक क़तरः ज़े-दरिया-ए-हयातन्द
ज़माँ चूँ ब-गुज़रद बर वै शवद बाज़
हम: अंजाम ईशाँ हम-चू आग़ाज़
रवद हर यक अज़ींं शाँ सू-ए-मरकज़
कि न-गुज़ारद तबीअ'त ख़ु-ए-मरकज़
चू दरियाई-अस्त वहदत लेक पुर-ख़ूँ
कज़ ऊ खेज़द हज़ाराँ मौज-ए-मजनूँ
निगर ता क़तरा-ए-बाराँ ज़े-दरिया
चेगुन: याफ़्त चंदें शक्ल-ओ-अस्मा
बुख़ार-ओ-आब-ओ-बाराँ-ओ-नम-ओ-गिल
नबात-ओ-जानवर इंसान-ए-कामिल
हम: यक क़तरः बूद आख़िर दर अव्वल
कज़ ऊ शुद ईं हम: अशिया मुमस्सिल
जहाँ अज़ अक़्ल-ओ-नफ़्स-ओ-चर्ख़-ओ-अजराम
चू आँ यक क़त्र: दाँ ज़े-आग़ाज़-ओ-अंजाम
अज़ल चूँ दर रसद दर चर्ख़-ओ-अंजुम
शवद हस्ती हम: दर नीस्ती गुम
चू मौजे बर ज़नद गर्दद जहाँ तम्स
यक़ीं गर्दद कि ईं कान लम तग़न बिल-अम्स
ख़याल अज़ पेश बर-ख़ेज़द ब-यक-बार
न-मानद ग़ैर-ए-हक़ दर दार-ए-दय्यार
तुरा क़ुर्ब शवद आँ लहज़ः हासिल
शवद तू बे-तूई बा दोस्त वासिल
विसाल ईं जाए-गाह रफ़-ए-ख़याल-अस्त
चु ग़ैर अज़ पेश बर-ख़ेज़द विसालअस्त
ब-गो मुमकिन ज़े-हद्द-ए-ख़्वेश ब-गुज़श्त
न ऊ वाजिब शुद व न वाजिब-ए-ऊ गश्त
हर आँ कू दर मआ'नी गश्त फ़ाइक़
न-गोयद कीं बुवद क़ल्ब-ए-हक़ायक़
हज़ाराँ नशअत दारी ख़्वाजः दर-पेश
ब-रौ आमद शुद ख़ुद रा ब-यन्देश
ज़े-बहस-ए-जुज़-ओ-कुल नशअत-ए-इन्साँ
बगोयम यक-ब-यक पैदा-ओ-पिन्हाँ
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