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सवाल - चे ख़्वाहद मर्द मा'नी जाँ इबारत

महमूद शबिस्तरी

सवाल - चे ख़्वाहद मर्द मा'नी जाँ इबारत

महमूद शबिस्तरी

MORE BYमहमूद शबिस्तरी

    सवाल

    प्रश्न

    चे ख़्वाहद मर्द मआ'नी ज़ाँ इबारत

    कि दारद सू-ए-चश्म-ओ-लब इशारत

    आध्यात्मिक जगत में स्थित पुरुष उन शब्दों का क्या आशय

    समझता जो नेत्रों और ओठों की ओर संकेत करते हैं?

    चे ख़्वाहद अज़ सर-ए-ज़ुल्फ़-ओ-ख़त-ओ-ख़ाल

    कसे कि-अंदर मक़ामा-अस्त-ओ-अहवाल

    और जो मनुष्य संसारी कार्यों में फंसा हुआ है वह मुख

    और बाल भौंह और तिल से क्या समझता है?

    जवाब

    उत्तर

    हर आँ चीज़े कि दर आलम अ'यान-अस्त

    चु अक्से ज़े-आफ़्ताब आँ जहानस्त

    इस संसार में जो वस्तु आँख से देखी जाती है

    वह उस संसार के सूर्य की एक किरण के समान है।

    जहाँ चूँ ज़ुल्फ़-ओ-ख़त-ओ-ख़ाल-ओ-अबरू-अस्त

    कि हर चीज़े ब-जा-ए-ख़्वेश नेकू-अस्त

    यह संसार अलकों और भृकुटियों के समान है।

    क्योंकि अपने अपने समय पर यहाँ की सभी वस्तुएँ भली हैं।

    तजल्ली गह-जमाल-ओ-गह-जलाल-असस्त

    रूख़-ओ-ज़ुलफ़-ए-आँ मआ'नी रा मिसाल-अस्त

    ईश्वर का प्रकाश कभी चमत्कार है और कभी संसार है।

    मुख तथा अलकें उसके उदाहरण के समान हैं।

    सिफ़ात-ए-हक़-तआ'ला लुत्फ़-ओ-क़हर-अस्त

    रूख़-ओ-जुल्फ़-ए-बुताँ रा ज़ाँ दो बहर-अस्त

    भगवान् कभी आनन्दमय होते हैं और कभी क्रोधित होकर वज्र गिराते हैं। प्रियतमाओं की अलकों और उनके सुन्दर मुखों के भी इसी प्रकार दो भाग किए जाते है।

    चु महसूस आमद अल्फ़ाज़-ए-मसमू

    नख़स्त अज़ बहर-ए-महसूस अस्त मौज़ूअ'

    यही शब्द सौन्दर्य में भी सम्मिलित हैं

    और उसके साथ ही साथ इनकी भी प्रशंसा की जाती है।

    नदारद आलम-ए-मा'ना निहायत

    कुजा बीनद मरूरा लफ़्ज़ ग़ायत

    अध्यात्मिक जगत की कोई निर्धारित सीमा नहीं है।

    कोरी बातों से निर्बल प्रतिज्ञाओं से वहाँ तक किस प्रकार पहुँच हो सकती है।

    हर आँ मा'नी कि शुद बर ज़ौक़ पैदा

    कुजा ता'बीर-ए-लफ़्ज़ी याबद रा

    उस संसार के गुप्त रहस्यों का वर्णन शब्दों द्वारा

    किस प्रकार किया जा सकता है।

    चु अहल-ए-दिल कुनद तफ़सीर-ए-मा'नी

    ब-मानिन्दे कुनद ता'बीर-ए-मा'नी

    जब कोई साधु उन रहस्यों का वर्णन करता है

    तो उदाहरण द्वारा उनको समझाने का प्रयत्न करता है।

    कि महसूसात अज़ाँ आलम चु साया अस्त

    कि ईं चूँ तिफ़्ल-ओ-आँ मानिंद-ए-दायः अस्त

    उस संसार की वे वस्तुएँ, जिनका हम अपनी इन्द्रियों द्वारा अनुभव करते हैं, छाया के समान हैं।

    कारण कि उसकी उपमा यदि हम छाया से देते है तो यह बच्चे के समान है और वही बच्चे को पालने वाली दाई है।

    ब-नज़्द-ए-मन ख़ुद अल्फ़ाज़-ए-मोअव्वल

    बराँ मा'नी फ़िताद अज़ वज़-ए-अव्वल

    मैं विश्वास करता हूँ कि, उस जगत की विवेचना करने वाले शब्द

    पहले ही से निर्धारित कर लिये गये होंगे।

    ब-महसूसात ख़्वास अज़ उर्फ-ए-आ'म-अस्त

    चे दानद आम कदाँ मा'नी कुदामस्त

    जिससे कि उनके द्वारा रहस्यों का उद्घाटन किया जा सके।

    जो शब्द साधारणतया बाद में निर्धारित किये गए हैं, उनसे रहस्यों की विवेचना उचित रूप से नहीं की जा सकती।

    नज़र चूँ दर जहान-ए-अक़्ल कर्दंद

    अज़ाँ जा लफ्ज़हा रा नक़्ल कर्दंद

    साधारण शब्द भला वहाँ तक किस प्रकार पहुँच सकते हैं?

    और साधारण लोग उन बातों की व्याख्या किस प्रकार कर सकते हैं।

    तनासुब रा रिआ'यत कर्द आक़िल

    चु सू-ए-लफ्ज़ मा'नी गश्त नाज़िल

    बुद्धिमानों ने बुद्धि द्वारा शब्दों को ढूँढ निकाला

    और उनके अर्थ का विचार करके उनको उचित रूप में रखा।

    वले तश्बीह कुल्ली नीस्त मुमकिन

    ज़े-ज़ुस्त-ओ-जू-ए-आँ मी-बाश साकिन

    परन्तु इस पर भी पूर्ण विवेचना उन्होंने भी नहीं कर पाई।

    उन रहस्यों का स्पष्ट वर्णन करने में वह भी समर्थ हो सके। इस पूर्णता तक पहुँचने का प्रयत्न तुम भी करो।

    दरीं मा'नी कसे रा बरतो दिक़ नीस्त

    कि साहब मज़हब ई-जाँ ग़ैर-ए-हक़ नीस्त

    इस विषय में यहाँ पर तुम्हारे ऊपर कोई शंका भी नहीं कर सकता है। कारण कि ईश्वर के अतिरिक्त यहाँ पर धर्म का स्वामी कोई अन्य नहीं है।

    वले ता बा ख़ुदी ज़ीनहार ज़ीनहार

    इबारत-ए-शरीअ'त रा निगह-दार

    सन्यासियों के लिये केवल तीन बातों में कुछ सुगमता कर दी गई है।

    नाश, मस्ती और तदुपरान्त पूर्णता।

    कि रुख़्सत अहल-ए-दिल रा दर से हाल-अस्त

    फ़ना-ओ-शुक्र-ओ-आन पस दीगर दलाल-अस्त

    जब तेरे पास धार्मिक विषयों का पूरा मसाला नहीं है तो व्यर्थ की बातें बनाकर और अपने आपको धर्म का ज्ञाता जताकर विधर्मी बनने का प्रयत्न मत कर।

    तुरा चूँ नीस्त अहवाल-ए-मवाजीद

    म-शो काफ़िर ज़े-नादानी ब-तक़लीद

    जो मनुष्य इन उपर्युक्त तीन बातों का ज्ञान रखता है, वह शब्दों, उनके व्यवहार और तर्क इत्यादि को समझता है।

    हर आँ कस कू शनासद ईं से हालत

    ब-दानद वज़्अ अल्फ़ाज़-ओ-दलालत

    ईश्वरीय सत्ता कोई सांसारिक वस्तु नहीं है और

    प्रत्येक मनुष्य सत् के रहस्यों को नहीं समझ सकता है।

    मजाज़ी नीस्त अहवाल-ए-हक़ीक़त

    हर कस याबद असरार-ए-हक़ीक़त

    मित्र! खोज करने वालों से व्यर्थ की बाते नहीं आती

    इन बातों को समझने के लिए पूरी जाँच या अनुभव की आवश्यकता है।

    गज़ाफ़ दोस्त नायद ज़े-अहल-ए-तहक़ीक़

    मर ईं राँ कश्फ़ याबद या कि तस्दीक़

    मैंने तुझे शब्दों और उनके अर्थों का भेद बतला दिया है।

    अब यदि तुझमें बुद्धि होगी तो सब बातों को समझ जाएगा।

    ब-गुफ़्तम वज़्अ अलफ़ाज़-ओ-मा'नी

    तुरा सर बस्ता गर दारी ब-दानी

    तू अर्थ के भीतर छिपी हुई उसकी असलियत को देख और फिर जिस असलियत के वास्ते जिस वस्तु की आवश्यकता पड़े उसका ध्यान रख।

    नज़र कुन दर मआ'नी सू-ए-ग़ायत

    लवाज़िम रा यकायक कुन रिआ'यत

    जब इस ढंग को तू बिल्कुल समझ गया है,

    अतएव मैं थोड़े से उदाहरण और भी तेरे सम्मुख रखता हूँ।

    ब-वज्ह-ए-ख़ास अज़ाँ तश्बीह मी-कुन

    ब-दीगर वज्हहा तनज़ीह मी-कुन

    नेत्रों और ओठों के प्रति

    चु शुद ईं क़ाएदः यकसर मुक़र्रर

    नुमायम ज़ाँ मिसाल-ए-चंद दीगर

    ध्यान से देख, प्रियतमा प्रियतमा की आँख से कौनसी वस्तु प्रकट हो रही है।

    और उस वस्तु की आवश्यक बातों का विचार कर।

    इशारत ब-चश्म-ओ-लब

    उसकी आँख के कारण सभी अपने हृदयों को थामे हुए बैठे हैं

    निगर कज़ चश्म-ए-शाहिद चीस्त पैदा

    रिआ'यत कुन लवाज़िम रा बदीन-जा

    उनमें एक पीड़ा का अनुभव कर रहे हैं और उसके

    अधर पीड़ित हृदय के लिये, प्रेम-रोगी के लिये अमृत हो रहे हैं।

    ज़े-चश्मश ख़्वास्त बीमारी-ओ-मस्ती

    ज़े-ला'लश गश्त पैदा ऐ'न-ए-हस्ती

    उन अधरों से सभी के प्राण प्रसन्न हो रहे हैं। उसकी दृष्टि में यद्यपि संसार

    समाता नहीं है, परन्तु उसका होठ सदैव आनन्द प्रदान किया करता है।

    ज़े-चश्म-ए-ऊ हमा दिलहा जिगर-ख़्वार

    लब-ए-ला'लश शिफ़ा-ए-जान-ए-बीमार

    उस आँख का प्रत्येक कटाक्ष, एक जाल और एक दाने के रूप

    में परिणत हो गया और उस होंठ से प्रत्येक कोना एक मदिरा-गृह बन गया।

    ज़े-चश्म-ए-ऊस्त दिलहा मस्त-ओ-मख़मूर

    ज़े-ला'ल-ए-ऊस्त जान-हा जुम्लः-मसरूर

    शोख़ी और मान से वह जीवन को बर्बाद कर देता है

    परन्तु चुम्बन देकर पुनः उसे जीवन प्रदान करता है।

    ब-चश्मश गरचे आलम दर न-यायद

    लबश हर साअ'ते लुत्फ़-ए-नुमायद

    हमारा रक्त उसकी आँख के कारण सदैव खौलता रहता है

    और हमारा प्राण उसके होंठ के कारण सदैव संज्ञाहीन रहता है।

    दमे अज़ मर्दुमी दिलहा नवाज़द

    दमे बे-चारगाँ रा चारः-साज़द

    उसकी आँख, शोख़ी से हृदय को मुट्ठी में कर लेती है

    और उसका होंठ हिल करके प्राण को आकर्षित कर लेता है।

    ब-शोख़ी जाँ दमद दर-आब-ओ-दर-ख़ाक

    बे-दम दादन ज़नद आतिश बर अफ़्लाक

    यदि तू एक बार उस आँख से और उस ओठ से मिलने की

    इच्छा प्रकट करेगा तो आँख कहेगी 'न' और ओठ कहेगा 'हाँ'।

    अज़-ऊ हर ग़म्ज़: दाम-ओ-दानः-ई शुद

    वज़ हर गोशः-ए-मय-ख़ानः शुद

    शोख़ी दिखला कर आँख संसार की भलाई करती है

    और ओठ प्राणों को प्रसन्न रखता है।

    ज़े-ग़म्ज़ः मीأदेहद हस्ती ब-ग़ारत

    ब-बोसः मी-कुनद बाज़श इमारत

    उस आँख की एक तिरछी चितवन ऐसी है जिससे हमारे प्राण निकलने लगते

    हैं और उसका एक चुम्बन हमें प्राण दान देकर, जीवित कर देता है।

    ज़े-चश्मश ख़ून-ए-मा दर जोश दायम

    ज़े-ला'लश जान-ए-मा बेहोश दायम

    इस संसार का अन्त उस आँख के एक पलक मारने में

    हो जाएगा जैसे आत्मा की फूंक से आदम उत्पन्न हो गया।

    ब-ग़मज़: चश्म-ए-ऊ दिल मी-रुबायद

    ब-इश्वा ला'ल-ए-ऊ जाँ मी-रुबायद

    उसकी उस आँख और उस रसीले ओठ का विचार करके

    सारे संसार ने मदिरा पान करना स्वीकार कर लिया।

    चू अज़ चश्म-ओ-लबश ख़्वाही किनारे

    मरीँ गोयद आँ गोयद कि आरे

    जब सम्पूर्ण जगत उसके दोनों नेत्रो में नहीं आता तो फिर

    मस्ती की निद्रा उसे किस प्रकार प्राप्त हो।

    ज़े-ग़म्ज़ः आलमे रा कार साज़द

    ब-बोसः हर ज़माँ दिल मी न-बाज़द

    हमारा यह अस्तित्व या तो मस्ती है अथवा स्वप्न।

    मिट्टी को ईश्वर से क्या सम्बन्ध है?

    अज़-ऊ यक ग़म्ज़ः-ओ-जाँ दादन अज़ मा

    अज़-ऊ यक बोस: इसतादन अज़ मा

    उसने मेरी आँखो में बैठ कर क्या कहा?

    इस बात को सोचने में बुद्धि के सम्मुख सैकड़ो कठिनाइयाँ उपस्थित हैं।

    ज़े-लम्ह-बिल-बसर शुद हशर-ए-आ'लम

    ज़े-नफ़ख़-रूह पैदा गश्त-ए-आदम

    चू अज़ चश्म-ओ-लबश अंदेशः कर्दंद

    जहान-ए-बुत-परस्ती पेशा कर्दंद

    न-यायद दर्द-ओ-चश्मश जुम्ला-हस्ती

    दरू चूँ आयद आख़िर ख़्वाब-ए-मस्ती

    वजूद-ए-मा हमा मस्ती-अस्त या ख़्वाब

    चे निस्बत ख़ाक रा बा रब्ब-ए-अरबाब

    ख़िरद दारद अज़ींं सद गूना आशुफ्त:

    कि वलतसना अला ऐनी चरा गुफ़्त

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