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सवाल - शराब-ओ-शम-ओ-शाहिद रा चे माना-अस्त

महमूद शबिस्तरी

सवाल - शराब-ओ-शम-ओ-शाहिद रा चे माना-अस्त

महमूद शबिस्तरी

MORE BYमहमूद शबिस्तरी

    सवाल

    प्रश्न

    शराब-ओ-शम-ओ-शाहिद रा चे मा'ना-अस्त

    ख़राबाती शुदन आख़िर चे दा'वा-अस्त

    उत्तर

    मदिरा, दीपक और प्रियतमा, ये सब मुख्य अंतरंग वस्तुएँ हैं, जिसकी झलक इन सभी सूरतों में दिखलाई पड़ती है।

    जवाब

    देखने वाले। देख, मदिरा, दीपक और प्रियतमा में कौनसा आनन्द छिपा हुआ है। यह एक ऐसा रहस्य है जिसको सभी जानते हैं।

    शराब-ओ-शम-ओ-शाहिद ऐ'न-ए-मा'नी-अस्त

    कि दर हर सूरत-ए-ऊ रा तजल्ली-अस्त

    इस स्थान में मदिरा फ़ानूस के समान है और शमत्र दीपक है। और साक्षी क्या है? आत्माओं के प्रकाश की चमक।

    शराब-ओ-शम-ओ-नूर-ओ-जौक़-ए-इरफ़ाँ

    ब-बीं शाहिद कि अज़ कस नीस्त पिन्हाँ

    मदिरा, दीपक और साक्षी सभी वस्तुएँ तेरे सम्मुख प्रस्तुत हैं। इस अवस्था में तुझे प्रणय-मार्ग में बढ़ते रहना उचित है।

    शराब ईं जा ज़ुजाज: शम्अ' मिस्बाह

    बुवद शाहिद फ़रोग़-ए-नूर-ए-अर्वाह

    कुछ समय के लिये तू वह मदिरा पी ले जिससे तू अपने आप को भूल जावे। कदाचित् तू अपने आप ही अपनी शरण पाजावे।

    ज़े-शाहिद बर दिल-ए-मूसा शरर शुद

    शराबश आतिश-ओ-शम्अ'-अश शजर शुद

    तू वह मदिरा पान कर, जिससे अहंकार को भूल जावे और समझने लग कि एक बंदा का अस्तित्व उस महासागर के अस्तित्व से सम्बन्ध रखता है।

    शराब-ओ-शम-ओ-जाम आँ नूर-ए-इसरा-अस्त

    वले शाहिद हम: आयात-ए-कुबरा-अस्त

    तू उस अमर मुख के प्याले से शराब पी, जिसका साक़ी ईश्वर है। और वह लोगों को पिलाया करता है।

    शराब-ओ-शम-ओ-शाहिद जुमल: हाज़िर

    म-शो ग़ाफ़िल ज़े-शाहिद बाज़ी आख़िर

    वह अत्यन्त पवित्र और जीवन की बुराइयों को दूर करने वाली है। वह मस्ती के समय तुझे पवित्र बना देगी।

    शराब-ए-बे-ख़ुदी दर कश ज़माने

    मगर अज़ दस्त-ए-ख़ुद-याबी अमाने

    मदिरा पान कर, निज को इस शीत से बचाने का प्रयत्न कर। मतवाला होना, धार्मिक मनुष्य बनने से बढ़कर है।

    ब-ख़ुर मय ता ज़े-ख़ेशतन वा रिहानद

    वजूद-ए-क़तर: दर दरिया रसानद

    जो मनुष्य ईश्वर के मन्दिर से निकाल दिया जाता है उसके लिये प्रकाश से बढ़कर अँधेरा होता है।

    शराबे ख़ुर कि जामश रू-ए-यार-अस्त

    प्याला चश्म-ए-मस्त-ए-बाद: ख़्वारस्त

    जब आदम को अँधेरे में रहते हुए बहुत समय लग गया तो इबलीस (शैतान) उस प्रकाश सदैव के लिये पृथक कर दिया गया।

    शराबे रा तलब पय-ए-साग़र-ओ-जाम

    शराब-ए-बाद:-ख़्वार-ओ-साक़ी-ए-आशाम

    किसी ने अपने हृदय-दर्पण को स्वच्छ कर लिया है उसके धब्बे मिटा डाले हैं। परन्तु उसमें यदि अपना ही मुख देखता है तो क्या लाभ हो सकता है? इतनी स्वच्छता के उपरान्त भी यदि तुममें अहंकार शेष रह गया है, तो तेरे प्रयत्नों से क्या लाभ हुआ?

    शराबे ख़ुर ज़े-जाम-ए-वज्ह-ए-बाक़ी

    सक़ाहुम रब्बहुम रास्त साक़ी

    उसके मुख की एक झलक जब मदिरा पर पड़ गई तो उसमे बहुत बुलबुले उत्पन्न हो गये।

    तहूर आँ मी बुवद कज़ लौस-ए-हस्ती

    तुरा पाकी देहद दर वक़्त-ए-मस्ती

    यह संसार और आत्माएँ उन्हीं बुलबुलों के रूपान्तर मात्र हैं। वह बुलबुला भटके हुओं के लिये एक आश्रय देने वाला स्थान है।

    ब-ख़ुर मय वा रहाँ ख़ुद रा ज़े-सर्दी

    कि बद-मस्ती बेह अस्त अज़ नेक मर्दी

    संसार की बुद्धि उसके रहस्य को पाने के लिये आकुल हो रही है और सम्पूर्ण इन्द्रियाँ उसी की तरफ़ लगी हुई हैं।

    कसे कू उफ़्ताद अज़ दरगाह-ए-हक़ दूर

    हिजाब-ए-ज़ुल्मत रा बेहतर अज़ नूर

    सम्पर्ण ज़र्ऱात उसके कोष के समान है और दिल हर पैमाने का एक ज़र्रा है।

    केह आदम रा ज़े-ज़ुल्मत सद मदद शुद

    ज़े-नूर इबलीस मलऊन-ए-अबद शुद

    बुद्धि, स्वर्गीय दूत, और प्राण सभी उसके कारण मतवाले हो रहे हैं। यही नहीं वरन् वायु, पृथ्वी और आकाश तक सब उसी मस्ती का राग अलाप रहे हैं।

    अगर आईनः-ए-दिल रा ज़े-दूदः-अस्त

    चु ख़ुद रा बीनद अंदर वै चे सूद-अस्त

    आकाश उसी के कारण चक्कर लगा रहा है और वायु उसकी सुगन्ध की एक लहर पाने के लिये उत्सुक हो रही है।

    ज़े-रूयश परतवे चू बर मय उफ़्ताद

    बसे शक्ल-ए-हबाबी बर वै उफ़्ताद

    स्वर्गीय दूतों ने पवित्र घट में से स्वच्छ मदिरा के घूँट ले लिये हैं और इस मिट्टी पर एक चुल्लू तलछट डाल दिया है।

    जहान-ओ-जाँ दर शक्ल-ए-हबाबस्त

    हबाबश औलिया ज़े-आफ़ताब-अस्त

    उसी एक चुल्लू से सब के सब मस्त हो गये और कभी पानी और कभी अग्नि में जा पड़े।

    शुदः ज़ू अक़्ल-ए-कुल हैरान-ओ-मदहोश

    फ़तादः नफ्से-ए-कुल रा हल्क़ः-दर-गोश

    जो घूँट (चुल्लू) पृथ्वी पर गिरा उसकी सुगन्ध से मनुष्य उत्पन्न हुआ और वह आकाश तक जा पहुँचा।

    हम: आलम चु यक खुम-ख़ान:-ए-ऊ-अस्त

    दिले हर ज़र्र:-ए-पैमान:-ए-ऊ-अस्त

    उसकी आभा से कुम्हलाए हुए शरीर में प्राण गये और उसकी मस्ती की लहर से सुस्त आत्मा में एक नवीन जीवन का संचार हुआ।

    ख़िरद मस्त मलाएक मस्त जाँ मस्त

    हवा मस्त ज़मीं मस्त ज़माँ मस्त

    उससे संसार भर के लोग मतवाले हो रहे हैं और सदैव अपने घर और कुटुम्ब से पृथक उदासीन फिरा करते हैं।

    फ़लक सर-गश्तः अज़ वै दर तगा पूए

    हवा दर दिल ब-उम्मीद-ए-यके बोए

    एक मनुष्य उसकी तलछट की सुगन्ध से ही बुद्धिमान हो गया और दूसरा उसके साफ़ रंग का वर्णन करने में व्यस्त हो गया।

    मलायक ख़ुर्दः साफ़ अज़ कूज़:-ए-पाक

    ब-जुर्अ': रेख़्तः दुर्दी दरीं ख़ाक

    कोई केवल आधे ही घूँट के पीने से उसकी लगन में मतवाला हो गया और दूसरे ने एक सुराही पी ली तब उसके प्रेम में पड़ा।

    अनासिर गश्त: अज़ाँ यक जुरअः सर-ख़ुश

    फ़तादः गह दर आब गह दर आतिश

    एक और भी मनुष्य है। उसने एक ही बार में मदिरा के मटके, मदिरा गृह, साक़ी और पीने वाले को अपने मुख में रख लिया।

    ज़े-बू-ए-जुर्रअ'-ई कि उफ़्ताद बर ख़ाक

    बरामद आदमी ता शुद बर अफ़्लाक

    परन्तु फिर भी उसकी पिपासा शान्ति नहीं हुई है। वाह! वह कितना विशाल हृदय साहसी और मतवाला है।

    ज़े-अ'क्स-ए-ऊ तन-ए-पज़मुर्द: जाँ गश्त

    ज़े-ताबश जान-ए-अफ़्सुर्द: रवाँ गश्त

    जो जीवन को ही एक बार में निगल गया है वह मानने और मानने दोनों से छुटकारा पा गया है, कर्म और अकर्म के बन्धनों से निकल गया है।

    जहानी ख़ल्क़ अज़-ऊ सर-गश्तः दायम

    ज़े-ख़ान-ओ-मान-ए-ख़ुद बरगश्तः दायम

    दोनों से किनारा कर बैठा और मदिरागृह के पुजारी का दामन पकड़े हुए उपस्थित है।

    यके अज़ बू-ए-दुर्द-अश आक़िल आमद

    यके अज़ रंग-ए-साफ़-अश नाक़िल आमद

    यके अज़ नीम-ए-जुर्अ': गश्त: सादिक़

    यके अज़ यक सुराही गश्त: आशिक़

    यके दीगर फ़रव बुर्द: ब-यक-बार

    ख़ुम-ओ-ख़ुमख़ान:-ओ-साक़ी-ओ-मय-ख़ार

    कशीदः जुम्ल:-ओ-माँद:-दहन बाज़

    ज़हे दरिया दिल-ए-रिंद-ए-सर-अफ़राज़

    दर आशामीदः हस्ती रा ब-यक-बार

    फ़राग़त याफ़्तः ज़े-इक़रार-ओ-इन्कार

    शुदः फ़ारिग़ ज़े-ज़ोहद-ए-ख़ुश्क-ओ-तामात

    गिरफ़्तः दामन-ए-पीर-ए-ख़राबात

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