सुख़न मी-गुफ़्तम अज़ लबहाश दर कामम ज़बाँ गुम शुद
रोचक तथ्य
अनुवाद: अमारा अली
सुख़न मी-गुफ़्तम अज़ लबहाश दर कामम ज़बाँ गुम शुद
गिरफ़तम ना-गहाँ नामश हदीसम दर दहाँ गुम शुद
मै उसके होठों की बात कर रहा था मेरे मुँह में ज़बान गुम हो गई थी, मैं ने अचानक उसका नाम लिया और मेरे मुँह में बात गुम हो गई.
दिल-ए-गुम-गश्त: रा दर हर ख़म-ए-ज़ुलफ़श हमी जुस्तम
कि नागह चश्म-ए-बद-ख़ूयश सू-ए-जाँ-रफ़्त-ओ-जाँ-गुम शुद
मैं अपने गुमशुदा दिल को उसकी ज़ुल्फ़ में हर ख़म में ढूढता था कि अचानक उसकी तेज़ मिज़ाज आँख जान की तरफ़ गई और जान गुम हो गई.
न-दानम दी के आमद के ज़े-पेशम रफ़्त काँ साअ'त
हुनूज़ ऊ बूद पेश-ए-मन कि होशम पेश अज़ाँ गुम शुद
मुझे नहीं पता कि अगला दिन कब आ गया, वो मेरे सामने से कब गया क्योंकि इस वक़्त अभी वह मेरे पास ही था, कि मेरे होश-ओ-हवास जाते रहे.
चे जाये ता'नः गर अज़ ख़ानः नारम याद दर कुए
कि दर हर ज़र्रः-ए-ख़ाकश हज़ाराँ खान-ओ-माँ गुम शुद
इस में ता’ने वाली कौन सी बात है, अगर मैं गली में घर को याद न करूँ क्योंकि इस ख़ाक के हर ज़र्रे में हज़ारों घर गुम हो गए हैं.
मन अंदर इशक़ ख़्वाहम मुर्द की जाँ मी-बुरद हर कस
अज़ाँ वादी कि दर वै सद-हज़ाराँ कारवाँ गुम शुद
मैं इश्क़ में मर जाउँगा कौन जान बचा कर ले जा सकता है, उस वादी से जिसमें हज़ारों करवाँ गुम हुए हैं.
दर-ए-मक़सूद बर उश्शाक़-ए-मिस्कीं बाज़ के गर्दद
चू दर ख़ाक-ए-दर-ए-ख़ूबाँ कलीद-ए-बख़्त-ए-शाँ गुम शुद
बेचारे आशिक़ों पर मक़सूद का दरवाज़ा कब खुलता है, क्योंकि ख़ूबसूरत लोगों के दरवाज़े पर उनके नसीब की कुंजी गुम हो गई है.
क़दम ता के दरेग़ आख़िर कनूँ अज़ हाल-ए-मिस्कीनाँ
कि आशिक़ ख़ाक गश्त व जानश अंदर ख़ाक-दाँ गुम शुद
आख़िर कब तक तुम मिस्कीनों के हाल से बे-ख़बर रहोगे, आशिक़ ख़ाक हो गया और उसकी रूह ख़ाक-ए-रवाँ में गुम हो गई.
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