Saakhi of Mahatma Sewadas Ji
गुरु समदर सिष्य तरंग है, उल्टि समाना मांहि।।
जन सेवादास रलि एक होय, सहजे सुख बिलसांहि।।
जन सेवादास सतगुरु मिल्या, मेहल्या मस्तक हाथ।।
जाता उल्टा फेरिया, अब सुमिरण लागे नाथ।।
सतगुरु दरवै सिष्य परि, तब सुमिरण लै लागै।।
जन सेवा सुख होवै प्राण मैं, संसा सब भागै।।
सतगुरु दरवै सिष्य परि, तब सुमिरण लै लागै।।
जनम मरण दुःख सब मिटै, सूता फिरि जागै।।
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere