Sufinama
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महात्मा सेवादास जी

महात्मा सेवादास जी की साखी

गुरु समदर सिष्य तरंग है, उल्टि समाना मांहि।।

जन सेवादास रलि एक होय, सहजे सुख बिलसांहि।।

जन सेवादास सतगुरु मिल्या, मेहल्या मस्तक हाथ।।

जाता उल्टा फेरिया, अब सुमिरण लागे नाथ।।

सतगुरु दरवै सिख परि, संसा सब खोवै।।

तनमन पांचो उल्टि करि, जन सेवा सुध होवै।।

सतगुरु सिख्य पर द्रवे, मलचर दे धोवै।।

जन सेवादास दुरमति सब हरै, संसा सब खोवै।।

सतगुरु दरवै सिष्य परि, तब सुमिरण लै लागै।।

जन सेवा सुख होवै प्राण मैं, संसा सब भागै।।

जन सेवादास सतगुरु मिल्या, पाया आतम भेव।।

संसा भागा भरम गया, भज अलख निरंजन देव।।

जन सेवादास सतगुरु मिल्या, पाया आतम ज्ञान।।

पूरण एक लखाइया, दूसर नांही आन।।

जन सेवादास सतगुरु मिल्या, अन्तर पट खोले।।

बहरा फिरि चेतन किया, गूंगा मुख बोले।।

सतगुरु दरवै सिष्य परि, तब सुमिरण लै लागै।।

जनम मरण दुःख सब मिटै, सूता फिरि जागै।।

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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