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Wajid Ji Dadupanthi

1651

Wajid Ji Dadupanthi

Pad 14

Doha 7

जल थल महियल सोधि सब, अब सु रहयौ इहि ठांऊँ।

मोहि समरपै जो कोऊँ, साधनि मुखि ह्वै खांऊँ।।

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पसहु कौं प्यारौ लगै, न्यारौ कीयो जाय।

आगैं आगैं बाछरा, पीछैं पीछैं गाय।।

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बाजीद मरजाद को मैटई, तीनि लोक को ईस।

सुर नर मुनि जोगी जती, पाइनि नांवहि सीस।।

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बाजीद मिर मार दह दिसि करैं, लकुटी लीयैं हाथ।

कृपा बिना को लावई, चरन कंवल कौं माथ।।

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साध सु मेरौ सरीरु है, हौं संतनि कौ जीव।

स्वांमी सेवग यूँ मिलैं, ज्यूँ दूध अरु घीव।।

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Chhand 5

 

Kundaliya 11

Raga Based Poetry 4

 

Saakhi 3

स्वारथि साथी जगत सब, बिन स्वारथ नहिं कोइ।

बाजीदा बिन स्वार्थी, अपलट अबिहर सोइ।।

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बाबै सकरा सांनि करि, पै पानी परि देइ।

बाजीद निंहचैं नींब कौ, करवौई फर लेई।।

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बाजीद दास के पास कौं, फल कहा बरनैं कोइ।

तांबै तै कंचन भयौ, पारस परसैं लोइ।।

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Jhulna 1

 

Recitation

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