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सलाम उस ज़ात-ए-अक़्दस पर सलाम उस फ़ख़्र-ए-आलम पर

अज़ीज़ वारसी देहलवी

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अज़ीज़ वारसी देहलवी

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    सलाम उस ज़ात-ए-अक़्दस पर सलाम उस फ़ख़्र-ए-आलम पर

    ब-हर-लहज़ः हज़ारों जिस के एहसानात हैं हम पर

    सलाम उस पर अज़ल ही से जो महबूब-ए-ज़मानः है

    सलाम उस पर कि जिस का ज़िक्र रहमत का ख़ज़ानः है

    सलाम उस पर लक़ब पा कर जो ख़त्म-उल-मुरसलींं आया

    सलाम उस पर जो बन कर रहमतुल-लिलआलमीं आया

    सलाम उस पर मोहब्बत बाहमी ता'लीम है जिस की

    सलाम उस पर ख़ुदा के दिल में भी ताज़ीम है जिस की

    सलाम उस पर सदाक़त जिस पे अब तक नाज़ करती है

    सलाम उस पर रिसालत जिस पे अब तक नाज़ करती है

    सलाम उस पर कि जो नबियों में सब से ही निराला है

    सलाम उस पर कि जिस से दोनों-आलम में उजाला है

    सलाम उस पर जो हर इंसाँ की आज़ादी का हामी था

    सलाम उस पर जो पहला दुश्मन-ए-दौर-ए-ग़ुलामी था

    स्रोत :
    • पुस्तक : कुल्लीयात-ए-अज़ीज़ (पृष्ठ 166)
    • रचनाकार : अज़ीज़ वारसी
    • प्रकाशन : मर्कज़ी पिंटरज़, चूड़ीवालान, दिल्ली (1993)

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