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शबद
उपदेश का अंग - साधो सहज भाव भजि रहिये
साधो सहज भाव भजि रहियेदुइ अच्छर अंतर महँ गहि रहि भेद न काहु तें कहिये
जगजीवन साहेब
शबद
मन तू ऐसा ब्याह करा रे तेरी सहज भक्ति हो जारे
मन तू ऐसा ब्याह करा रे तेरी सहज भक्ति हो जारेसातों वान समझ के न्हाले निभय ढोल बजा रे
घीसा साहेब
पद
अवदू भूले को घर लावै
सहज सुन्न में रहै समाना सहज समाधि लगावैउन्मनि रहि ब्रह्मा को चीन्है परम तत्व को ध्यावै
कबीर
पद
स्वजीवन के पद - पग घुंघरू बाँध 'मीराँ नाची रे
'मीराँ के प्रभू गिरिधर नागर सहज मिले अविनासी रे
मीराबाई
पद
भक्ति-स्वरूप - मन मन धुन से भक्ति करो री
'राधास्वामी' मेहर करें अब अपनी भव सागर से सहज तरो री
शालीग्राम
क़िस्सा काव्य
हीर वारिस शाह
वारिस शाह भिबूत किस कढ्ढ्या ई कित्थों निकली पूजनी आग है वे ।350. रांझा
वारिस शाह
अरिल्ल
अरिल छंद - निर्मल रूप पार सों सुरति लगाइया
देत दमामा ढोल सो जमहिं नचाइयाकहै गुलाल सोइ सूर सहज घर पाइया
गुलाल साहब
कुंडलिया
पर्द: अंदर का टरै देखि परै तब रूप
लागै सहज समाधि सक्ति से सीव बनावैमहल करै उँजियार तेल बिनु दीपक बाती
पलटू साहेब
अरिल्ल
अरिल छंद - अर्ध उर्ध को खेल कोऊ नर पावई
इँगल पिंगल दोउ बाँधि सहज तब आवईकहै 'गुलाल' हर रोज अनंद तब आवई