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छंद
धन्य अपर छिति छत्रपति, अमर तिहारो नाम।
धन्य अपर छिति छत्रपति, अमर तिहारो नाम।शाहजहां की गोद में, हत्यो सलाबत खान।।
बनवारी
अरिल्ल
अरिल छंद - अजर अमर पुर देस संत रन साजिया
अजर अमर पुर देस संत रन साजियामन पवना होउ साज नौबति धुनि बाजिया
गुलाल साहब
दोहा
विनय मलिका - अजर अमर अबिगत अमित अनुभय अलख अभेव
अजर अमर अबिगत अमित अनुभय अलख अभेवअबिनासी आनन्दमय अभय सो आनंद देव
दया बाई
गूजरी सूफ़ी काव्य
'बाजन' जीव अमर अहे मुआ न कहियो कुए
'बाजन' जीव अमर अहे मुआ न कहियो कुएजो ऐ कोई मुआ कहे मुआ एही होए
शैख़ बहाउद्दीन बाजन
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शबद
सुनो रे संतों, ऐसा है देश हमारा !
अजर अमर निस्तारा ।ना यहाँ पुण्य, नहीं यहाँ पापा ।
स्वामी आत्मप्रकाश
सूफ़ी लेख
बिहारी-सतसई-संबंधी साहित्य (बाबू जगन्नाथदास रत्नाकर, बी. ए., काशी)
काँपत अमर खलभल मचै ध्रुवलोक, उड़गन-पति अति संकनि सकता हैं।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
पद
अथ वन्दना- नमो नमो निरंजनम्, निराकार निरलेपकम।।
नमो नमो निरंजनम्, निराकार निरलेपकम।।सहजानन्द अखण्ड ब्रह्म, अजरौ, अमर, अनूपकम।।
महात्मा सेवादास जी
सूफ़ी लेख
कबीरपंथी और दरियापंथी साहित्य में माया की परिकल्पना - सुरेशचंद्र मिश्र
भूमि परी डाबर पहचानी। इमि जीवहिं माया लपटानी।। अमर मूल, पृ. 178
हिंदुस्तानी पत्रिका
सूफ़ी लेख
कवि वृन्द के वंशजों की हिन्दी सेवा- मुनि कान्तिसागर - Ank-3, 1956
रस तरंगिणी उज्जवल गीत मणि विद्वन् मंडलगीत गोबिन्द गोवर्द्धन सप्तशती अमर कोष
भारतीय साहित्य पत्रिका
दकनी सूफ़ी काव्य
मराहतुल हशर
किता वक़्त गुज़रे पै हो अमर रबमोहम्मद कूँ बेगी करो याँ तलब
मोहम्मद फ़िराक बीजापुरी
पद
निराकार, साकार मे आप रही रघुवीर ।
निराकार, साकार मे आप रही रघुवीर ।सहजे घुन लागी रहे, कहते अमर फकीर ।।
मंगतदास जी
छप्पय
वह अविगत गति अमित अगम अनभेव अषंडित।
वह अविगत गति अमित अगम अनभेव अषंडित।अबिहर अमर अनूप अरुचि अपरूच अमंडित।।
भीषनजी दादूपंथी
सूफ़ी लेख
बिहारी-सतसई की प्रतापचंद्रिका टीका - पुरोहित श्री हरिनारायण शर्म्मा, बी. ए.
(पृ. 197)टीका-। अन्योक्ति। अमर-। काहू कौ कार्ज लघु ही सिद्व भये। ताषैं अन्योक्ति।।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
पदमावत की एक अप्राप्त लोक कथा-सपनावती- श्री अगरचन्द नाहटा
सात समुद्र जल भरयो, तरयो मोहोल ते उपर दरवाजे भाणक दरखत, छत्रपण अमर छाजे,