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सूफ़ी लेख
शाह तुराब अली क़लंदर और उनका काव्य
हुई बरसात आख़िर किस तरह ‘आलम न हो मुज़्तरमैं तेरा नाम लेता हूँ दु’आ में अव्वल-ओ-आख़िर
सुमन मिश्रा
ना'त-ओ-मनक़बत
अंबिया में अव्वल-ओ-आख़िर उन्ही की ज़ात हैफ़ख़्र आदम जान 'ईसा वाली-ए-बतहा हुए
सद्दाम हुसैन नाज़ाँ
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ग़ज़ल
ज़िंदगी का अव्वल-ओ-आख़िर थी वो पहली नज़रइब्तिदा से क्या तअ'ल्लुक़ इंतिहा से क्या ग़रज़
ज़हीन शाह ताजी
फ़ारसी कलाम
कमाल-ए-बातिन-ओ-ज़ाहिर जमाल-ए-अव्वल-ओ-आख़िरहमेश: हम-चुनीं मौजूद अहमद बूद अहमद बूद
अज़ीज़ सफ़ीपुरी
सलाम
या-नबी सलाम-अलैका या-रसूल सलाम-अलैकाअव्वल-ओ-आख़िर तुम्हीं हो बातिन-ओ-ज़ाहिर तुम्हीं हो
मेराज वारसी
ग़ज़ल
अव्वल-ओ-आख़िर को मेरा 'इश्क़' काफ़ी है मुझेफ़िक्र बे-जा है अगर इमरोज़ या फ़र्दा करूँ
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
फ़ारसी कलाम
हम अव्वल-ओ-आख़िर मनम हम ज़ाहिर-ओ-बातिन मनमहम आलम-ए-दुनिया मनम हम नश्आ-ए-उ’क़्बास्तम
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
ग़ज़ल
अव्वल-ओ-आख़िर 'तुराब' उस का हमारा साथ हैजो हमारा यार है जिस को किया हम ने क़ुबूल
शाह तुराब अली क़लंदर
सूफ़ी कहानी
एक यहूदी वज़ीर का मक्र–ओ-फ़रेब से नसरानियों में तफ़रक़ा डलवाना - दफ़्तर-ए-अव्वल
एक यहूदी बादशाह बहुत ज़ालिम था वो ई'सा का दुश्मन और ई'साईयों का क़ातिल था अगरचे
रूमी
कलाम
मैं तेरा नाम लेता हूँ दु'आ में अव्वल-ओ-आख़िरवसीला जिस का ऐसा हो दु'आ रद्द उस की हो क्यूँ कर