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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
ग़ज़ल
ज़र्रा-नवाज़ी का है उन की शुक्रिया सद शुक्रियाजो हज़रत-ए-'नादिम' को भी अहल-ए-ज़बाँ कहते रहे
नादिम बल्ख़ी
ना'त-ओ-मनक़बत
गुंग हो जाएँ बस इक आन में सब अहल-ए-ज़बाँएक उम्मी को जो तू इल्म का मसदर कर दे
सत्तार वारसी
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ग़ज़ल
हम अहल-ए-इशक़ आसाँ इशक़ की मंज़िल समझते हैंना जब मुश्किल समझते थे ना अब मुश्किल समझते हैं
क़मर जलालवी
ना'त-ओ-मनक़बत
क़िब्ला-ए-अहल-ए-सफ़ा मालिक-ओ-मुख़्तार अ'लीऐ ज़हे सल्ले-अ'ला नाएब-ए-सरकार अ'ली
यादगार शाह वारसी
सूफ़ी उद्धरण
अपनी ज़रूरत से पहले दूसरों की ज़रूरत का ध्यान रखना, यही अहल-ए-करम का तरीक़ा है।
अपनी ज़रूरत से पहले दूसरों की ज़रूरत का ध्यान रखना, यही अहल-ए-करम का तरीक़ा है।
शैख़ अहमद सरहिन्दी
ना'त-ओ-मनक़बत
मत्मह-ए-अहल-ए-विला है सूरत-ए-तेग़-ए-अ’लीक़ाबिल-ए-मदह-ओ-सना है सीरत-ए-तेग़-ए-अ’ली