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ना'त-ओ-मनक़बत
आँगन मेरे आया दिलदार बिस्मिल्लाह बिस्मिल्लाहकीता मैं सिर्र-ए-सिदक़ यक-बार नज़रुल्लाह नज़रुल्लाह
क़ादिर बख़्श बेदिल
पद
होरी के पद - घर आँगन न सुहावे होली पिया बिन मोहि न भावे
घर आँगन न सुहावे होली पिया बिन मोहि न भावेदीपक जोए कहा करूँ सजनी पिय प्रदेश रहावे
मीराबाई
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सूफ़ी लेख
सूरदास का वात्सल्य-निरूपण, डॉ. जितेन्द्रनाथ पाठक
मनिमय कनक नन्द कै आँगन निज प्रतिबिम्ब पकरिवे धावत।सिखवत चलन जसोदा मैया।
सूरदास : विविध संदर्भों में
सूफ़ी लेख
सूर का वात्सल्य-चित्रण, डॉक्टर सोम शेखर सोम
मनिमय कनक नंद कैं आँगन बिंब पकरिवै धावत।।कबहुँ निरखि हरि आपु छाँह कौं कर सौं पकरन चाहत।
सूरदास : विविध संदर्भों में
सूफ़ी लेख
सूर के माखन-चोर- श्री राजेन्द्रसिंह गौड़, एम. ए.
इन अँखियन आगै ते मोहन, एकौ पल जनि होहु नियारे। औरौ सखा बुलाइ आपने, इहि आँगन खेलो मेरे बारे।।
सम्मेलन पत्रिका
सूफ़ी लेख
कुतुबनकृत मृगावती के तीन संस्करण- परशुराम चतुर्वेदी
‘आइ सखी घर कीत अँजोरा। चाँद चउद्दसि भए उन भयेरा।घर आँगन भरि रहा अँजोंरा। दिनकर काज करहि निसि भोरा।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
ग़ज़ल
घुँघट घुँघट चंदा चमके आँगन आँगन फूल खिलेरूप-नगर की जिन गलियों में उस ने अलख जगाया है