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उदासी
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ग़ज़ल
लिखा ता'वीज़ किस ने आह इस दिल की उदासी कापढ़ा है किस ने अफ़्सूँ हाए मेरी बे-हवासी का
शाह तुराब अली क़लंदर
पद
हम फकीर जनम के उदासी निरंजनवासी
हम फकीर जनम के उदासी निरंजनवासी ।।ध्रु0।।सत कि भिच्छा दे मेरी माई मन का आटा भरपूर
शिवदिन केसरी
पद
भेषनिंदा -अंतरु मलि निरमलु नहीं कीना, बाहरि भेष उदासी ।
अंतरु मलि निरमलु नहीं कीना, बाहरि भेष उदासी ।हिरदै कमलु घटि ब्रह्म न चीन्हा, काहे भइआ संनिआसी।।
त्रिलोचन
सूफ़ी लेख
जायसी और प्रेमतत्व पंडित परशुराम चतुर्वेदी, एम. ए., एल्.-एल्. बी.
अथवा, ओहि पथ जाइ जो होइ उदासी।
हिंदुस्तानी पत्रिका
सूफ़ी लेख
संत साहित्य - श्री परशुराम चतुर्वेदी
दाया करे धरम मन राखैघर में रहे उदासी।
हिंदुस्तानी पत्रिका
कवित्त
कहत पुकार कोइलिया हे ऋतु राज ।
सोना सम्पति काज त्यागि सब काज ।भये उदासी बिरिया बिसरी लाज ।।
रानी रघुवंश कुमारी
मनहर
शुद्ध जो प्रकास बोध प्रापत भयो है जाकौ,
विषै भोग वनवासी पै उदासी मोक्ष प्यासी,अलि वेई जांण लेत मति के उजासि हैं।
महात्मा मनोहरदास जी
ग़ज़ल
जब सें तुझ इ'श्क़ की गरमी का असर है मन मेंतब सें फिरता हूँ उदासी हो बिरह के बन में