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ग़ज़ल
पर्दा-दारी के ’एवज़ बदनाम-ओ-रुसवा कर दियाऐ ख़याल-ए-यार क्या करना था और क्या कर दिया
बेदम शाह वारसी
शे'र
मोहब्बत के एवज़ रहने लगे हर-दम ख़फ़ा मुझ सेकहो तो ऐसी क्या सरज़द हुई आख़िर ख़ता मुझ से
हसरत मोहानी
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नज़्म
शिकवा
तान-ए-अग़्यार है रुस्वाई है नादारी हैक्या तिरे नाम पे मरने का एवज़ ख़्वारी है
अल्लामा इक़बाल
ना'त-ओ-मनक़बत
आल-ओ-अस्हाब की सुन्नत मिरा मे'यार-ए-वफ़ातिरी चाहत के 'एवज़ जान का सौदा करना
पीर नसीरुद्दीन नसीर
ग़ज़ल
है मुफ़्त अगर जी के 'एवज़ लीजिए उस कोसेहत से मुझे ख़ूब है आज़ार-ए-मोहब्बत
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
कलाम
इतने बुतख़ानों में सज्दे एक का'बा के 'एवज़कुफ़्र तो इस्लाम से बढ़ कर तिरा गिरवीदा है
आसी गाज़ीपुरी
ग़ज़ल
ये कौन आया कि धीमी पड़ गई लौ शम्अ' कीपतंगों के 'एवज़ उड़ने लगीं चिंगारियाँ दिल की
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
ग़ज़ल
ले के दिल उस शोख़ ने इक दाग़ सीने पर दियाजो लिया उस का एवज़ उस से मुझे बेहतर दिया
एहसनुल्लाह ख़ाँ बयान
व्यंग्य
मुल्ला नसरुद्दीन- पहली दास्तान
धूल से भरा, कराहता हुआ जब वह उठा तो गधा दोस्ताना ढंग से कान खड़े किये