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दोहा
रहिमन वहाँ न जाइये जहाँ कपट को हेत
रहिमन वहाँ न जाइये जहाँ कपट को हेतहम तन ढारत ढेकुली सींचत अपनो खेत
रहीम
अरिल्ल
ज्यूँ ज्यूँ करि कैं कपट ही गोबिन्द गाइये
ज्यूँ ज्यूँ करि कैं कपट ही गोबिन्द गाइयेराम नाम के लेत पाप कहाँ पाइये
वाजिद जी दादूपंथी
सूफ़ी लेख
बिहारी-सतसई की प्रतापचंद्रिका टीका - पुरोहित श्री हरिनारायण शर्म्मा, बी. ए.
दोहा तू मति मानै मुकतई, दिए कपट बित कोटि।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
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सूफ़ी लेख
सूफ़ी काव्य में भाव ध्वनि- डॉ. रामकुमारी मिश्र
14. पातिव्रत्य, अनुरक्ति, निष्कलुषता, निष्ठा, न्याय 1515. कपट 1
सम्मेलन पत्रिका
दकनी सूफ़ी काव्य
मंत्र तंत्र नहिं मानत साखी
राम कहे त्याके पग हौं लागूँदेखत कपट अभिमान दूर भागूँ
तुकाराम
पद
श्री बृन्दावन मो अजयत ब्रिजराज बिराजत है
कपट की तान लपटकी तिक पट भुमयन तिनणमआर एकहि जो गगन हवाई,
अमृत राय
पद
माशुक तेरा मुखड़ा दिखाव
माशुक तेरा मुखड़ा दिखाव।।ध्रु0।।कपट का घुंगट खोल सीतावी, इश्क मिठाई चखाव ।।
माधव मुनीष्वर
दकनी सूफ़ी काव्य
वसीयत उल हादी
कूड कपट मद मछर मस्ती शैतानी उसका नाऊँउसकूँ छोड़ राह बिचार शरियत जिसकूँ कहना
शाह बुरहानुद्दीन जानम
कुंडलिया
मुख मीठा मैला मना, परनामों की बांणि
मुख मीठा मैला मना, परनामों की बांणि।।झूंठ कपट अरू डिंमता, वै साधु मत जांणि।।
स्वामी आत्माराम जी
महाकाव्य
।। रसप्रबोध ।।
कपट निरादर गरब तें यह बिब्बोक विचारि।पूरन होवै चाह जिहि पिय संग बिहित निहारि।।715।।
रसलीन
पद
विडंबना -संतो भाई भूल्यो कि जग बौरानो, यह कैसे करि कहिये।
कथै ज्ञान असनान जग्य व्रत, उरमें कपट समानी ।प्रगट छांड़ि करि दूर बतावत, सो कैसे पहचानी ।।
बाबा किनाराम
दोहा
'अहमद' या मन सदन में, हरि आवे केहि वाट।
'अहमद' या मन सदन में, हरि आवे केहि वाट।बिकट जुरे जौ लौ निपट, खुले न कपट कपाट।।
अहमद
सूफ़ी लेख
संत कबीर की सगुण भक्ति का स्वरूप- गोवर्धननाथ शुक्ल
1. मन के मोहन बीठुला, यहु मन लागौ तोहि रे। 2. इहि पर नरहरि भेटिये, तूं छाड़ि कपट अभिमान रे।