आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "कला"
अत्यधिक संबंधित परिणाम "कला"
कुंडलिया
केतो सोम कला करो, करो सुधा को दान।
बरनै दीनदयाल, चंद तुमही चित चेतो।कूर न कोमल होंहिं, कला जो कीजे केतो।।
दीनदयाल गिरि
होरी
काहू कला-कल नाहीं परत है ब्याकुल रहत सरीर
काहू कला-कल नाहीं परत है ब्याकुल रहत सरीरना जानूँ का होत है मन में मीठी-मीठी पीर
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
पद
तूँ आदि भवानी जग जानी सर्बानी सर्ब कला दे विद्या बरदानी
तूँ आदि भवानी जग जानी सर्बानी सर्ब कला दे विद्या बरदानीअंबे जगदंबे असुर संघारनी तरन तारनी तान ताल
बैजू बावरा
अन्य परिणाम "कला"
सूफ़ी लेख
संत साहित्य - श्री परशुराम चतुर्वेदी
अनँत कला तुव रूपी।।1।।बिगस्यो कमल फुल्यो काया बन,
हिंदुस्तानी पत्रिका
सूफ़ी लेख
मधुमालती नामक दो अन्य रचनाएँ - श्रीयुत अगरचंद्र नाहटा
मधु मधु कहै खिलावै तात। बढै कला मानु दिन रात।अंत-
हिंदुस्तानी पत्रिका
सूफ़ी लेख
जायसी और प्रेमतत्व पंडित परशुराम चतुर्वेदी, एम. ए., एल्.-एल्. बी.
बिरहा कठिन काल कै कला। बिरह न सहै काल बरु भला।।
हिंदुस्तानी पत्रिका
सूफ़ी लेख
उड़िया में कृष्ण–भक्ति-साहित्य, श्री गोलोक बिहारी धल - Ank-1, 1956
तहुँ कलाए नन्दबलाकृष्ण जगन्नाथ की कला का सोहलवाँ भाग है।
भारतीय साहित्य पत्रिका
कुंडलिया
भारी भार भरयो बनिक, तरिबो सिन्धु अपार।
बरनै दीनदयाल, सुमिर अब तू गिरधारी।आरत जन के काज, कला जिन निज संभारी।।
दीनदयाल गिरि
सतसई
।। बिहारी सतसई ।।
द्वैज सुधादीधिति-कला लखि लखि दीठि लगाइ।मनौ अकास-अगस्तिया एकै कली लखाइ।।92।।
बिहारी
मनहर
अवधि अलप जामैं जीव सोच पोच करै
काव्यकी कला अनेक छन्द के प्रबन्ध अतिराग हू रसीले रस कहाँ लग पीजिए।।
रामजी दास जी
दकनी सूफ़ी काव्य
अमृत घड़ी में खुशियाँ तबल बजाये
सुरंग रँगीली मेहंदी बहुरंग से कला करकेतक चावा सेती शह पाव कूँ लगाये