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ना'त-ओ-मनक़बत
आसमां का चाँद भी उतरा लिए कश्कोल हैघर पे बीबी आमना के नूर का माहौल है
महबूब गौहर इस्लामपुरी
ना'त-ओ-मनक़बत
आते हैं शहंशाह भी कश्कोल लिए दर परकिस शान का है तेरा दरबार-ए-करीमाना
अ'ब्दुल सत्तार नियाज़ी
ना'त-ओ-मनक़बत
लब पे नग़्मे सल्ले-'अला के हाथों में कश्कोलदेखो तो सरकार का मंगता कैसा लगता है
अ'ब्दुल सत्तार नियाज़ी
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ना'त-ओ-मनक़बत
कौन है जिस के नहीं कश्कोल में दाता की भीकहो रहा है हर जगह तेरी सख़ा का तज़्किरा
अ'ब्दुल सत्तार नियाज़ी
ना'त-ओ-मनक़बत
चार-सू जल्वा-आराई-ए-ज़ात है वाह क्या बात हैकोई भरने पे कश्कोल-ए-हाजात है वाह क्या बात है
पीर नसीरुद्दीन नसीर
सूफ़ी लेख
समाअ और क़व्वाली का सफ़रनामा
आगे चलकर शाह कलीमुल्लाह शाहजहानाबादी ने क़व्वाली और समाअ पर अपनी प्रसिद्ध किताब कशकोल लिखी ।