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ना'त-ओ-मनक़बत
गली तैबा की रश्क-ए-कहकशाँ मा'लूम होती हैज़मीं ख़जलत दह-ए-हफ़्त आसमाँ मा'लूम होती है
तल्हा रिज़वी बरक़
ना'त-ओ-मनक़बत
न मह-ओ-नुजूम की जुस्तुजू न तो कहकशाँ की तलाश हैतिरी राह पर जो निकल पड़ा उसी कारवाँ की तलाश है
तल्हा रिज़वी बरक़
ना'त-ओ-मनक़बत
हर क़दम पर कुछ ज़मीनें गुल-फिशां हो जाएँगीकहकशाँ दर कहकशाँ आबादियाँ हो जाएँगी
नुशूर वाहिदी
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सूफ़ी लेख
बहादुर शाह और फूल वालों की सैर
गोया कि कहकशाँ है सुरय्या के हाथ मेंशाम होते होते बाज़ार इतना भरा कि तिल रखने को जगह न रही।
मिर्ज़ा फ़रहतुल्लाह बेग
नज़्म
गुफ़्तः-ए-ऊ.....
परचम थे नक़्श-ए-पा के सितारों के हाथ मेंगुज़री जो कहकशाँ से सवारी रसूल की
मुज़फ़्फ़र वारसी
ग़ज़ल
सितारों को ये हसरत है कि होते वो मिरे आँसूतमन्ना कहकशाँ को है वो मेरी आस्तीं होती
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
ना'त-ओ-मनक़बत
वल्लैल हो या कहकशाँ ज़ुल्फ़-ए-नबी पर हैं फ़िदाइस में बंधे हैं दो जहाँ कितनी हसीं ज़ंजीर है