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ना'त-ओ-मनक़बत
डॉ. शाह ख़ुसरौ हुसैनी
ना'त-ओ-मनक़बत
गली तैबा की रश्क-ए-कहकशाँ मा'लूम होती हैज़मीं ख़जलत दह-ए-हफ़्त आसमाँ मा'लूम होती है
तल्हा रिज़वी बरक़
ना'त-ओ-मनक़बत
न मह-ओ-नुजूम की जुस्तुजू न तो कहकशाँ की तलाश हैतिरी राह पर जो निकल पड़ा उसी कारवाँ की तलाश है
तल्हा रिज़वी बरक़
ना'त-ओ-मनक़बत
हर क़दम पर कुछ ज़मीनें गुल-फिशां हो जाएँगीकहकशाँ दर कहकशाँ आबादियाँ हो जाएँगी
नुशूर वाहिदी
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सूफ़ी लेख
बहादुर शाह और फूल वालों की सैर
गोया कि कहकशाँ है सुरय्या के हाथ मेंशाम होते होते बाज़ार इतना भरा कि तिल रखने को जगह न रही।
मिर्ज़ा फ़रहतुल्लाह बेग
नज़्म
गुफ़्तः-ए-ऊ.....
परचम थे नक़्श-ए-पा के सितारों के हाथ मेंगुज़री जो कहकशाँ से सवारी रसूल की
मुज़फ़्फ़र वारसी
ना'त-ओ-मनक़बत
तुम्हारे रौज़ा-ए-अक़्दस के हुस्न पर हैं फ़िदाये माह-ओ-कहकशाँ अख़्तर मिरे रसूल-नुमा
सज्जाद हुसैन क़ादरी
ना'त-ओ-मनक़बत
हुस्न-ए-हैदर की तजल्ली से मलक जिन्न-ओ-बशरआफ़्ताब-ओ-माहताब-ओ-कहकशाँ रौशन हुए