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ना'त-ओ-मनक़बत
ख़्वाजा-हिंदल-वली का हुक्म भी क्या हुक्म थाकूज़े में आया अना सागर तिरी के वास्ते
उवेस रज़ा अम्बर
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कलाम
एह तन रब्ब सच्चे दा हुजरा खिड़ियाँ बाग़-बहाराँ हूविच्चे कूज़े विच मुसल्ले विच सज्दे दियाँ ठाराँ हू
सुल्तान बाहू
ग़ज़ल
बताया हाल युं कूज़े में दरिया के समाने काकि साक़ी ख़ुद मुजस्सम साग़र-ए-मुल से निकल आया
मुज़्तर ख़ैराबादी
ग़ज़ल
मिरे दिल को भी साक़ी आरज़ू-ए-बादः-नोशी हैये सुन सुन कर कि इक कूज़े में भर देता है दरिया तू
मुज़्तर ख़ैराबादी
सूफ़ी लेख
समकालीन खाद्य संकट और ख़ानक़ाही रिवायात
अक्सर ख़ुद खाना पकाते थे और दस्तरख़्वान की ख़िदमत ख़ुद किया करते थे।दरवेशों बिल-खुसूस तआ’म खाने