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ना'त-ओ-मनक़बत
रजअ'त जो आफ़ताब ने वक़्त-ए-ग़ुरूब कीवाबस्ता था बुनान-ए-जनाब-ए-अमीर का
ख़्वाजा नासिरुद्दिन चिश्ती
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ना'त-ओ-मनक़बत
ज़ुल्मतों का हो गया इक आन में सूरज ग़ुरूबजगमगाए नूर-ए-रब्बानी से इंसानी क़ुलूब
महबूब गौहर इस्लामपुरी
ग़ज़ल
नहीं आँख जल्वः-कश-ए-सहर ये है ज़ुल्मतों का असर मगरकई आफ़्ताब ग़ुरूब हैं मिरे ग़म की शाम-ए-दराज़ में
सीमाब अकबराबादी
शे'र
नहीं आँख जल्वा-कश-ए-सहर ये है ज़ुल्मतों का असर मगरकई आफ़्ताब ग़ुरूब हैं मिरे ग़म की शाम-ए-दराज़ में
सीमाब अकबराबादी
ग़ज़ल
वो ही सुब्ह है वो ही शब है ग़ुरूब-ए-आफ़्ताब भी वहीपर्बत वही आबशार भी वही पहले जैसा नहीं नज़ारा है
शैख़ सुभान गुल
सूफ़ी लेख
बिहार में क़व्वालों का इतिहास
(यादगार-ए-रोज़गार, स० 859)बिहार के कुछ क़व्वालों की दास्तान सुनिए और आँसूओं के चंद क़तरे भी उनकी
रय्यान अबुलउलाई
सूफ़ी लेख
बाबा फ़रीद शकर गंज
पुलिस थक जाती है लेकिन ज़ाइरीन की आमद का सिल्सिला उसी ज़ोर-ओ-शोर से जारी रहता है।
निज़ाम उल मशायख़
सूफ़ी लेख
ज़िक्र-ए-खैर : हज़रत शाह अय्यूब अब्दाली
बिहार की सर-ज़मीन हमेशा से मर्दुम-ख़ेज़ रही है। न जाने कितने इल्म ओ अदब और फ़क़्र
रय्यान अबुलउलाई
सूफ़ी साहित्य
इल्म-ए-लदुन्नी
बा’ज़-औक़ात ऐसा देखने में आया है कि जब एक आ’लिम को सर या सीने की बीमारी