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बैत
घटा का'बे से बाला-ए-फ़राज़-ए-कोहसार आई
घटा का'बे से बाला-ए-फ़राज़-ए-कोहसार आईमुबारक बादा-नोशो रहमत-ए-परवरदिगार आई
क़मर बदायूँनी
ना'त-ओ-मनक़बत
अँधेरी रात है ग़म की घटा 'इस्याँ की काली हैदिल-ए-बे-कस का इस आफ़त में आक़ा तू ही वाली है
अहमद रज़ा ख़ान
कलाम
फ़ना बुलंदशहरी
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ग़ज़ल
घटा उठी है तू भी खोल ज़ुल्फ़-ए-’अम्बरीं साक़ीतिरे होते फ़लक से क्यूँ हो शर्मिंदा ज़मीं साक़ी
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
कवित्त
अवधपुरी घुमडि घटा रही छाय ।
अवधपुरी घुमडि घटा रही छाय ।चलत सुमन्द पवन पुरवाई नभ घन घोर मचाय ।।
प्रताप कुंवरी बाई
सवैया
चात्रिक मोर करें अति शोर उठी घन घोर है श्याम घटा।
चात्रिक मोर करें अति शोर उठी घन घोर है श्याम घटा।चमकै बिजरी अति जोर भरी अरु लागि झरी लिये ठाट ठटा।।
हफ़ीजुल्लाह ख़ान
दोहा
विनय मलिका - स्याम घटा घन देखि कै बोलत गहगह मोर
स्याम घटा घन देखि कै बोलत गहगह मोरब्रजबासी तिमि जी उठैं चितवत हरि की ओर
दया बाई
हिंडोलना
।। हिंडोलना ।।
परम सुख परमांन परमल, सरस सुगंध सनेह।।अघटा घटा घटा घट घट, निराकार निज देह।।
जगजीवन दास जी
सूफ़ी लेख
संत साहित्य - श्री परशुराम चतुर्वेदी
जन ऊरा तूँ पूरा।।3।।दामिनि दमकि घटा घहरानी,