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सूफ़ी लेख
बिहारी-सतसई की प्रतापचंद्रिका टीका - पुरोहित श्री हरिनारायण शर्म्मा, बी. ए.
पचरँग रँग वैंदी परी उठी ऊगि मुष जोति। पहरै चीर चिनौंठिया चटक चौगुनी होति।।4।।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
पद
कालिन्दी के तीर-निकट कदम्ब कुंज
राधे की चटक देखे, अँखियाँ अटक रहीं,मीन को मटक नाहिं साजत वा दिन की ।।
ताज
ना'त-ओ-मनक़बत
गीत कलियों की चटक ग़ज़लें हज़ारों की चहकबाग़ के साज़ों में बजता है तराना तेरा
अहमद रज़ा ख़ान
कलाम
चमन में नाज़ बुलबुल ने किया जब अपने नामे परचटक कर ग़ुंचा बोला क्या किसी से हो नहीं सकता
दाग़ देहलवी
ग़ज़ल
हाँ ये क़ल्ब-ए-हसन की धड़कन ये ग़ुंचों की चटकरंग-ओ-बू शौक़-ओ-हया का अहद-ओ-पैमाँ कुछ नहीं
ज़हीन शाह ताजी
ग़ज़ल
तुरफ़ा क़ुरैशी
ग़ज़ल
अहक़र बिहारी
कलाम
तसद्दुक़ अ’ली असद
सूफ़ी लेख
महाकवि सूरदासजी- श्रीयुत पंडित रामचंद्र शुक्ल, काशी।
पुरुष आलंबन हुआ और स्त्री आश्रय। जनता के बीच प्रेम के इस स्वरूप ने यहाँ तक