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शे'र
चमक उट्ठी है क़िस्मत एक ही सज्दः में क्या कहनालिए फिरता है पेशानी पे नक़्श-ए-आस्ताँ कोई
अफ़क़र मोहानी
सूफ़ी उद्धरण
दुनिया और उस के तमाम ऐश तुच्छ हैं, इस की ख़त्म हो जाने वाली चमक-धमक पर आशिक़ होना, ज़िंदगी से हाथ धोना है।
ग़ौस अली शाह
शे'र
जुब्बः-साई जिस से की क़िस्मत चमक उठी 'रियाज़'हज़रत-ए-'साहिर' के दर से क्यूँ हमारा सर उठे
रियाज़ ख़ैराबादी
ना'त-ओ-मनक़बत
ख़याल कर के जो मैं ने देखा उसी की सूरत चमक रही हैउसी का नक़्शा है चार-जानिब उसी की रंगत दमक रही है
औघट शाह वारसी
दकनी सूफ़ी काव्य
धमक म्याने गमक मुढे गमक में चमक
धमक म्याने गमक मुढे गमक में चमकचमक म्याने ज्योति मुंढे ज्योति में झमक
केशव स्वामी
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ग़ज़ल
नीयाज़ मकनपुरी
कलाम
तमाम 'आलम में हम ने देखा उसी का जल्वा चमक रहा हैये उस की क़ुदरत का है तमाशा सदफ़ में गौहर दमक रहा है
तसद्दुक़ अ’ली असद
दोहरा
गहरी राति हाथ छिप जावे
गहरी राति हाथ छिप जावे, अते पौन रूप जम सरके ।बिजली चमक चमक डर पावे, बरफ़ सार-मुंह करके ।
हाशिम शाह
कवित्त
दाड़िम खुलन छीनी कुंद की फुलन छीनी
बीजुरी चमक छीनी जुगुगू दमक छीनीमोतिन झमक छीनी सान खडगान की।।
सय्यद छेदाशाह
कवित्त
पावस न प्यारी चढ़यो सैन साजि मैन भारी
दामिनि दमक पूरवाण की चमक शालकरति विहाल हमै बाल बिना नन्द लाल।।
क़ादिर बख़्श
दकनी सूफ़ी काव्य
मसनवी दर फ़वायद बिस्मिल्ला
बहुत तोहफ़े शीरीं वो खुशबू है आबचमक में है ज्यों चश्म-ए आफ़ताब