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सूफ़ी कहावत
आतिश निशान्दन ओ अख़गर गुज़ाश्तन कार-ए-ख़िरदमंदां नीस्त
एक बुद्धिमान व्यक्ति आग को बुझाने के बाद आग की चिंगारी नहीं छोड़ता।
वाचिक परंपरा
ग़ज़ल
मोहब्बत है मोहब्बत फूँक ही डाले दो-‘आलम कोये चिंगारी सी जो दिल में दबी मा’लूम होती है
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
ग़ज़ल
मोहब्बत है मोहब्बत फूँक डालेगी दो-’आलम कोये चिंगारी सी जो दिल में दबी मा’लूम होती है
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
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कलाम
घनी शाख़ों में छुप कर जब कोई चिड़िया चहकती हैतो मेरे दिल में क्यूँ हसरत की चिंगारी भड़कती है
अहमद नदीम क़ासमी
ग़ज़ल
कहीं कौन-ओ-मकाँ में जो न रखी जा सकी ऐ दिलग़ज़ब देखा वो चिंगारी मिरी मिट्टी में शामिल की
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
सूफ़ी लेख
चिश्तिया सिलसिला की ता’लीम और उसकी तर्वीज-ओ-इशाअ’त में हज़रत गेसू दराज़ का हिस्सा
ख़लीक़ अहमद निज़ामी
सूफ़ी लेख
हकीम शाह अलीमुद्दीन बल्ख़ी फ़िरदौसी
ये जाम कभी न कभी तो पीना ही था मगर इस तरह शाह साहिब को एक