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साखी
बिरह का अंग - नैन हमारे बावरे छिन छिन लोड़ै तुज्झ
नैन हमारे बावरे छिन छिन लोड़ै तुज्झना तुम मिलो न मैं सुखी ऐसी बेदन मुज्झ
कबीर
सूफ़ी उद्धरण
छिन जाने के बा’द बहिश्त कीक़द्र होती है।
छिन जाने के बा’द बहिश्त कीक़द्र होती है।
वासिफ़ अली वासिफ़
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दोहा
कबहुँ न छिन ठहरत हैं मधुकर नैनाँ लाल
कबहुँ न छिन ठहरत हैं मधुकर नैनाँ लालपहुप अधिक बहु रूप के हेरत फिरैं 'जमाल'
जमाल
शबद
भेद बानी - साधो इक बासन गढ़ै कुम्हार
छिन छिन गावत छिन छिन रोवत छिन छिन सुरति सुधार'जगजीवन' आपुहिं सब खेलत आपुहिं सब तें न्यार
जगजीवन साहेब
सूफ़ी लेख
सूर का वात्सल्य-चित्रण, डॉक्टर सोम शेखर सोम
सखी री, सुन्दरता कौ रंग।छिन-छिन माँह परति छबि औरे, कमल नैन के अंग।
सूरदास : विविध संदर्भों में
कविता
पिय के पद कंचन-राती ।
पिय के पद कंचन-राती ।विष्णु विरंचि संभु सम पति मे छिन-छिन प्रेम लगाती ।
रानी रघुवंश कुमारी
महाकाव्य
।। रसप्रबोध ।।
विविचारी है फूल सौं छिन छिन फूलत जात।।33।।।। तिन संजोग मकरन्द लौं रस उपजत है आनि।
रसलीन
सतसई
।। बिहारी सतसई ।।
देखत बुरै कपूर ज्यौं उपै जाइ जिन लाल।छिन छिन जाति परी खरी छीन छबीली बाल।।89।।
बिहारी
पद
बैसाख- भजन कर भगवान् को मन, आइयो बैसाख रे ।
भजन कर भगवान् को मन, आइयो बैसाख रे ।घटत छिन छिन अवधि तेरी, जायगी मिलि खाख रे ।।
तुलसीदास (ब्रजवासी)
सूफ़ी लेख
सूरदास का वात्सल्य-निरूपण, डॉ. जितेन्द्रनाथ पाठक
हलधर सहित फिरैं जब आँगन चरन सबद सुनि पाऊँ।छिन छिन छुधित जानि पय कारन हौं हठि निकट बुलाऊँ।।
सूरदास : विविध संदर्भों में
पद
पूस- पूस कीट पतंग होते, किधों तरवर पच्छि रे ।
जगत सोवत फिरत इत उत, अवधि छिन छिन घटतु रे ।सुबस रसना पाइ के, हरि नाम काहे न रटतु रे ।।
तुलसीदास (ब्रजवासी)
पद
नैन सलौने खंजन मीन
अलसौहैं तिरछौहैं भौहैं नागरि नारि नवीन'जुगलप्रिया' चितवनि में घायल होवै छिन छिन छिन
जुगल प्रिया
सूफ़ी लेख
संत साहित्य - श्री परशुराम चतुर्वेदी
चाहत पल छिन छूटत नाहीं,बहुत होत हित कारी।।