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पद
प्रेमालाप के पद - कारो कारो कारो छे सब से बुरो
कारो कारो कारो छे सब से बुरोइन कारा से प्रीत न कीजे मन म्हारो बहुत हरयो री
मीराबाई
सूफ़ी लेख
चरणदासी सम्प्रदाय का अज्ञात हिन्दी साहित्य - मुनि कान्तिसागर - Ank-1, 1956
8 मोहन मित्र सुहायो छै जी 8 सोरठ9 म्हाँरे जगमें न कोई म्हाँरे राम छे धनीजी 5 सोरठ
भारतीय साहित्य पत्रिका
पद
विरह के पद - लग्यो मारो गिरधारी शूँ ध्यान वेरागण हुं थई
उभी छे एक नार दीठे जाने दुबलीकांतो एनुं पियरीयुं प्रदेश काँ तो एने सासुलडी
मीराबाई
ना'त-ओ-मनक़बत
छे महीने बा'द ही सरकार से जा कर मिलींरब ने पूरा कर दिया यूँ इंतिज़ार-ए-फ़ातिमा
रियाज़ अहमद
कुंडलिया
भेद - उल्टा कूवा गगन में तिस में जरै चराग़
छे रितु बारह मास रहत जरतै दिन रातीसत-गुरु मिला जो होय ताहि की नज़र में आवै
पलटू साहेब
ना'त-ओ-मनक़बत
सदक़ा इन आ’याँ का हो छे ऐ'न ’इज़्ज़ ’इल्म-ओ-अमल’अफ़्व-ओ-’इरफ़ाँ आ'फ़ियत अहमद 'रज़ा' के वास्ते