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ढकोसला
खीर पकाई जतन से और चरख़ा दिया चलाए
खीर पकाई जतन से और चरख़ा दिया चलाएआया कुत्ता खा गया तू बैठी ढोल बजाए
अमीर ख़ुसरौ
साखी
अथ जतन का अंग - जन 'रज्जब' राखे बिना नाम न राख्या जाय
अथ जतन का अंग - जन 'रज्जब' राखे बिना नाम न राख्या जायजैसे दीपक जतन बिन विसवाबीस बुझाय
रज्जब
अष्टपदी
ज्ञान मति वर्णन - तन मथने को जतन कहूँ अब जानिये
तन मथने को जतन कहूँ अब जानियेज्यों निकसै तत सार बिलोवन ठानिये
चरनदास जी
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सूफ़ी लेख
उदासी संत रैदास जी- श्रीयुत परशुराम चतुर्वेदी, एम. ए., एल-एल. बी.
अनिक जतन निग्रह कीए, टारी न टरै भ्रमफांस।
हिंदुस्तानी पत्रिका
सूफ़ी लेख
हाफ़िज़ की कविता - शालिग्राम श्रीवास्तव
उस्मान कवि कहते हैं—–कौन भरोसा देह का, छाड़हु जतन उपाय।
सरस्वती पत्रिका
दकनी सूफ़ी काव्य
यूसुफ़ जुलेखा
उनें देक यूसुफ़ कूँ कर शाह मनले जा अपने डेरे में राखा जतन
हाशमी बीजापुरी
दकनी सूफ़ी काव्य
जेकूमनामा
बग़ैर अज़ हुकम मैं दिया नंई उननरखा हूँ छिपा यक जगे कर जतन
फ़ज़ल बिन मोहम्मद अमीन
सूफ़ी लेख
संतों के लोकगीत- डॉ. त्रिलोकी नारायण दीक्षित, एम.ए., पी-एच.डी.
दास कबीर जतन से ओढी ज्यो की त्यो धरि दीनी चदरिया।। नैहरवा हमको नहि भावै।
सम्मेलन पत्रिका
सूफ़ी लेख
हाफ़िज़ की कविता- शाल़ग्राम श्रीवास्तव
कौन भरोसा देह का, छाड़हु जतन उपाय।कागद की जस पूतरी, पानि परे धुल जाय।।
सरस्वती पत्रिका
सतसई
।। बिहारी सतसई ।।
पिय-प्राननु की पाहरू करति जतन अति आपु।जाकी दुसह दसा परयौ सौतिनिहूं संतापु।।278।।
बिहारी
चाचरी
उट्ठो चिश्तियो इस को सर पर उठाओ
यही दामन-ए-पन-जतन है यही तोमेरे वारिस-ए-दूसरा की है चादर
हैदर शाह वारसी
दकनी सूफ़ी काव्य
ख़जाने मारिफ़त
है यो नफ़्स मोमिन जो खासाँ के तीनजतन कर को रखना इस बातों के नीन