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शबद
थर-थर काया काँपन लागी हाल्या जाता जरा नहीं
थर-थर काया काँपन लागी हाल्या जाता जरा नहींजिसे बुलावै कडवा बोलै राड कटी तू मरा नहीं
नेकीराम
सूफ़ी लेख
महाराष्ट्र के चार प्रसिद्ध संत-संप्रदाय - श्रीयुत बलदेव उपाध्याय, एम. ए. साहित्याचार्य
जय जय देव निर्मल। निजजनाखिलमंगल। जन्म जरा अदल जाल
हिंदुस्तानी पत्रिका
सूफ़ी लेख
महाराष्ट्र के चार प्रसिद्ध संत-संप्रदाय- श्रीयुत बलदेव उपाध्याय, एम. ए. साहित्याचार्य
जय जय देव निर्मल। निजजनाखिलमंगल। जन्म जरा अदल जाल
हिंदुस्तानी पत्रिका
सूफ़ी लेख
मीरां के जोगी या जोगिया का मर्म- शंभुसिंह मनोहर
(2) जरा जमजीत अजीत जोगेस।आदेश आदेस आदेस आदेस।।1
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
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कुंडलिया
टूटे नख रद केहरी, वह बल गयो थकाय।
टूटे नख रद केहरी, वह बल गयो थकाय।हाय जरा अब आइ कै, यह दुख दियो बढ़ाय।।
दीनदयाल गिरि
सूफ़ी लेख
कदर पिया- श्री गोपालचंद्र सिंह, एम. ए., एल. एल. बी., विशारद
बोलो जरा धरम से पहिले, किसने कहा चाहने को।। दिल- तुमरे कारन बिपत पड़ी, जो भए पराये बस।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
दकनी सूफ़ी काव्य
दीवाने सुलतान
तुज पास ऐ सुलतान जरा मँगता नहीं, मुख ना फिरामुज से गदा कू बख़्शे तुज वस्ल का खैरात बस
शाह सुल्तान सानी
सूफ़ी लेख
चरणदासी सम्प्रदाय का अज्ञात हिन्दी साहित्य - मुनि कान्तिसागर - Ank-1, 1956
अषै ग्रंथ सुनै चित्त लाई। जरा मनै को धोषो जाई।।चौरासी में फिर नहि आवै। निरभै ह्वै राम गुन गावै।।28।।
भारतीय साहित्य पत्रिका
कविता
अन्त की याद- मकड़ी जाला पूर 2 के कितने जीव सताती है।
यही दशा हो रही हमारी जरा नहीं है दिल में ज्ञान।बुरा कर्म कोई एक न छोड़ा नहीं अन्त का किया ध्यान।।
हकीम हाजी अली ख़ान
सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
(171) टप टप चूसत तन को रस। वासे नाहीं मेरा बस।।लट लट के मैं हो गई पिजरा। ऐ सखी साजन ना सखी जरा।।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
(171) टप टप चूसत तन को रस। वासे नाहीं मेरा बस।। लट लट के मैं हो गई पिजरा। ऐ सखी साजन ना सखी जरा।।