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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
ना'त-ओ-मनक़बत
जल्वा-ए-शाह-ए-अ’रब है जल्वा-ए-बाबा फ़रीदइस लिए रश्क-ए-क़मर है चेहरा-ए-बाबा फ़रीद
शहबाज़ असदक़
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ना'त-ओ-मनक़बत
ख़ुदा के नूर का जल्वा है जल्वा-ए-शैख़-ए-अकबर कासरापा नूर-ए-अहमद है सरापा शैख़-ए-अकबर का
ग़ौसी शाह
ना'त-ओ-मनक़बत
है दिल में जल्वा-ए-रुख़-ए-ताबान-ए-मुस्तफ़ाक़िंदील-ए-का'बा है तह-ए-दामान-ए-मुस्तफ़ा
शकील बदायूँनी
ना'त-ओ-मनक़बत
जल्वा-ए-नूर-ए-ख़ुदा सल्ले-'अला कुछ और है'अज़्मत-ए-मौला 'अली शेर-ए-ख़ुदा कुछ और है
महमूद अहमद रब्बानी
ना'त-ओ-मनक़बत
तिरा जल्वा-ए-नूर-ए-ख़ुदा ग़ौस-ए-आ'ज़मतिरा चेहरा-ए-ईमाँ-फ़ज़ा ग़ौस-ए-आ'ज़म
मुस्तफ़ा रज़ा ख़ान
ना'त-ओ-मनक़बत
जमाल-ए-जल्वा-ए-यज़्दाँ जनाब-ए-ख़्वाजा-ए-ख़ानूनख़याल-ए-'इश्क़ बर क़ुरआँ जनाब-ए-ख़्वाजा-ए-ख़ानून
ख़्वाजा नाज़िर निज़ामी
शे'र
रहज़न-ए-ईमान तू जल्वा दिखा जाए अगरबुत पुजें मंदिर में मस्जिद में ख़ुदा की याद हो
अकबर वारसी मेरठी
ना'त-ओ-मनक़बत
रुख़-ए-पुर-नूर का जल्वा दिखा दो या रसूलुल्लाहकरम से आरज़ू दिल की दिला दो या रसूलुल्लाह
मीराँ शाह जालंधरी
ना'त-ओ-मनक़बत
'अली को मज़हर-ए-रब जल्वा-ए-सरकार कहता हूँ'अली को कल का मौला सय्यद-ओ-सरदार कहता हूँ