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फ़ारसी कलाम
अ'र्ज़-ए-हस्ती ज़ंग बर आईनः-ए-दिल मी-शवदता-नफ़स ख़त मी-कशद ईं सफ़्हः बातिल मी-शवद
बेदिल अज़ीमाबादी
सूफ़ी लेख
हज़रत शैख़ बू-अ’ली शाह क़लंदर
आतिश अफ़गन दर दिलम मानिंद-ए-तूरशो’ला बर ख़ेज़द-ओ-गर्दद ज़ंग दूर
सूफ़ीनामा आर्काइव
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ग़ज़ल
क्यूँ न होवे उस कूँ हासिल ताले'-ए-असकंदरीदूर कर ज़ंग-ए-कुदूरत दिल कूँ जो दर्पन किया
तुराब अली दकनी
ना'त-ओ-मनक़बत
अस्सलाम ऐ आँ-कि ज़ंग ज़ुल्मत-ए-कुफ्र-ओ-निफ़ाक़सैक़ल-ए-तेग़-ए-तू अज़ आईनः-ए-गेते ज़े-दूद
जामी
ग़ज़ल
साफ़ कर दिल ताकि हो आईनः-ए-रुख़्सार-ए-यारमाने'अ-ए-रौशन-दिली है ज़ंग इस आहन के बीच
मीर मोहम्मद बेदार
ग़ज़ल
वो रंग कब है यार हक़ीक़त में ज़ंग हैमक़्बूल-ए-दिल न हो जो मिले दर्द-ए-सर से रंग
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
म-शो फ़रेफ़्त:-ए-रंग-ओ-बू-ए-क़दह दर कशकि ज़ंग-ए-ग़म ज़े-दिलत जुज़ मय-ए-मुग़ाँ न-बरद
हाफ़िज़
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
ज़ुल्फ़-ए-तू बर रुख़-ए-तू हर आंकस कि दीद गुफ़्तब-गिरफ़्त मुल्क-ए-चीन-ओ-हबश पादशाह-ए-ज़ंग
अमीर ख़ुसरौ
ग़ज़ल
सदा-ए-ज़ंग से नाला अगर मजनूँ का पैदा होअ'जब क्या गिर पड़े ग़श खा के लैला अपने महमिल से
शाह अकबर दानापूरी
सूफ़ी साहित्य
रिसाला-ए-हक़-नुमा
इस शुग़्ल का एक फ़ायदा यह भी है कि नींद मुकम्मल तौर पर चली जाती है।