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पद
भूषण दुचार एक बार एक ठौर पैन्ह
भूषण दुचार एक बार एक ठौर पैन्ह,पैन्हहु सुजानि या मै हानि अति भारी है ।
सरस्वती देवी
दोहा
लिख्यो जु करम लिलाट विधि रोम रोम सब ठौर।
लिख्यो जु करम लिलाट विधि रोम रोम सब ठौर।सुख दुख जीवन मरन को करे जुगुन कछु और।।
अहमद
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दोहा
सखी न पाया ठौर ठिकाना पेग फिरा चहु-देस
सखी न पाया ठौर ठिकाना पेग फिरा चहु-देससाजन का घर द्वार नहीं भेजूँ कहाँ सन्देस
औघट शाह वारसी
कविता
उज्जल पख की रैन चैन उज्जल रस दैनी।
ठौर ठौर लखि ठौर रहत मनमथ सो भारी।बिहरत विविध बिहार तहां गिरि पर गिरधारी।।
नागरीदास और बनीठनीजी
सूफ़ी लेख
बिहारी-सतसई-संबंधी साहित्य (बाबू जगन्नाथदास रत्नाकर, बी. ए., काशी)
गुहैं ठौर की ठौर तैं लर मैं होति बिसेषि।। सतरह सै एकासिया अगहन पाँचैं सेत।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
पद
श्री बृन्दावन मो अजयत ब्रिजराज बिराजत है
कबित, ध्रुपद त्रिवट पंचदर पंचगीत और प्रबंध सुनि सुनि,ठौर ठौर गन्धर्न-गर्वहत उपर थाट बिमानी,
अमृत राय
सतसई
।। बिहारी सतसई ।।
छकि रसाल-सौरभ सने मधुर माधुरी-गंध।ठौर ठौर झौंरत झँपत भौंर-झौंर मधु-अंध।।496।।