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व्यंग्य
मुल्ला नसरुद्दीन- पहली दास्तान
लेकिन ढह जायेगा वह, ज्यों महबस-ए-ताश,कट जायेगा यह दौर-ए-सितम, आता है वह दिन जब ज़ालिम
लियोनिद सोलोवयेव
ग़ज़ल
क़ुद्सियत के जल्वों ने जब रक़्स फ़रमाया मियाँतूर-ए-हस्ती ढह गया बस इक तसव्वुर कार में
सय्यद अमजद हुसैन
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ना'त-ओ-मनक़बत
ज़ुलम ढह सकता नहीं अब कोई भी मज़लूम परसर से पा तक बन के रहमत नूर वाला आ गया