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कलाम
अहवाल-ए-मोहब्बत में कुछ फ़र्क़ नहीं ऐसासोज़ ओ तब-ओ-ताब अव्वल सोज़ ओ तब-ओ-ताब आख़िर
अल्लामा इक़बाल
ना'त-ओ-मनक़बत
वो तग-ओ-ताज़ कि दी तेज़ी-ए-दौराँ को शिकस्तवो तब-ओ-ताब कि साया था गुरेज़ाँ तुझ से
सूफ़ी तबस्सुम
ना'त-ओ-मनक़बत
अगर हो यूँ रक़म तब लुत्फ़ है ना'त-ए-पयम्बर कास्याही मुश्क की हो और क़लम जिब्रईल के पर का
शब्बीर साजिद मेहरवी
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ना'त-ओ-मनक़बत
ग़म-ए-फ़ुर्क़त से हूँ बे-ताब या महबूब-ए-सुबहानीदिखा दो रू-ए-’आलम-ताब या महबूब-ए-सुबहानी
शाह अब्दुल क़ादिर बदायूँनी
साखी
प्रीति सहित जे हरि भजैं, तब हरि होहि प्रसन्न।
प्रीति सहित जे हरि भजैं, तब हरि होहि प्रसन्न।सुन्दर स्वाद न प्रीति बिन, भूख बिना ज्यौं अन्न।।
सुंदरदास छोटे
साखी
जब मन बहकै उड़ि चलै, तब आनै ब्रह्म ग्यान।
जब मन बहकै उड़ि चलै, तब आनै ब्रह्म ग्यान।ग्यान खड़ग के देखते, डरपे मनके प्रान।।
शिवनारायण
ग़ज़ल
नुशूर वाहिदी
ना'त-ओ-मनक़बत
नज़र में ताब हो तो देखो ताजदार का रंगअ'याँ है ताज-ए-फ़तर्ज़ा से इफ़्तिख़ार का रँग
वासिफ़ रज़ा वासिफ़
नज़्म
।। शरद ऋतु ।।
जब माह अघहन का ढलता हो तब देख बहारें जाड़े की।और हँस हँस पूस सँभलता हो तब देख बहारें जाड़े की।
नज़ीर अकबराबादी
सूफ़ी कहानी
एक क़ज़वेनी का गोंदा लगवाना और सूई के कचोके की ताब ना लाना - दफ़्तर-ए-अव्वल
एक रिवायत सुनो कि अहल-ए-क़ज़वेन में रस्म है कि जिस्म के मुख़्तलिफ़ हिस्सों जैसे हाथ, बाज़ू
रूमी
कलाम
जब लग ख़ुदी करें ख़ुद नफ़सों तब लग रब्ब न पावें हूशर्त फ़ना नूँ जानें नाहीं, नाम फ़क़ीर रखावें हू