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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
कलाम
बजाए दस्त-ए-साक़ी चूमते हैं संग-ए-असवद कोनज़र आता है जल्वा बे-रुख़-ए-जानाना का’बे में
नुशूर वाहिदी
फ़ारसी कलाम
ब-देह दस्त-ए-यक़ीं ऐ दिल ब-दस्त-ए-शाह-ए-जीलानीकि दस्त-ए-ऊ बुवद अंदर हक़ीक़त दस्त-ए-यज़्दानी
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
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बैत
ज़े-दस्त-ए-तही बर न-यायद उमीद
ज़े-दस्त-ए-तही बर न-यायद उमीदब-ज़र बर कुनी चश्म-ए-देव-ए-सपीद
सादी शीराज़ी
बैत
ब-ख़िदमत मनेह दस्त बर कफ़्श-ए-मन
ब-ख़िदमत मनेह दस्त बर कफ़्श-ए-मनमरा नान देह व कफ़्श बर सर ब-ज़न
सादी शीराज़ी
कलाम
मैं भी पी लेता जो होता कोई तक़दीर में जामदस्त-ए-साक़ी में सुबू था मुझे मा'लूम न था
अकबर वारसी मेरठी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
गर ज़ुल्फ़-ए-परीशानत दर दस्त-ए-सबा उफ़्तदहर जा कि दिले बाशद बर्बाद-ए-हवा उफ़्तद